भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 |
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अध्याय – I |
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प्रारम्भिक (Preliminary) |
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इस अधिनियम को क्या कहा जाता है? |
"भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932" |
"भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932" का उद्देश्य क्या है? |
भागीदारी से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करना समीचीन है |
धारा 1 के अनुसार, अधिनियम भारत के किन क्षेत्रों में प्रारंभ में लागू नहीं हुआ था? |
संम्पूर्ण भारत |
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अधिनियम में 34 की धारा 95 और पांचवी अनुसूची द्वारा (31-10-2019 से) इस अधिनियम में किन शब्दों का लोप किया गया? |
जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय |
भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 किस अधिनियम को हटाकर लाया गया था? |
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (धारा 239-266) |
कौन सा मामला भागीदारी के प्रारंभ से संबंधित है? |
कॉक्स बनाम हिकमैन (1860) |
भारतीय भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932के लागू होने की तिथि क्या है, जो धारा 1 में दी गई है? |
1 अक्टूबर, 1932 सिवाय धारा 69
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धारा 69 कब प्रवृत्त की गई? |
1933 के अक्तूबर के प्रथम दिन |
फर्म का कार्य (act of a firm) किस धारा में परिभाषित है? |
धारा 2 (क) |
फर्म के कार्य क्या अभिप्रेत है? |
सभी या किसी भागीदार का कार्य |
फर्म के कार्य की परिभाषा का मुख्य उद्देश्य क्या है? |
भागीदार के कार्य के लिए फर्म की उत्तरदायित्व सीमित करना |
फर्म के कार्य को किस सिद्धांत के अंतर्गत समझा जाता है? |
एजेंसी सिद्धांत |
यदि एक भागीदार फर्म के उद्देश्यों के बाहर जाकर कार्य करता है, और शेष भागीदारों को जानकारी नहीं है, तो वह कार्य क्या कहलाएगा? |
अतिक्रमण कार्य (ultra vires act) |
किस केस में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भागीदार, फर्म के एजेंट के रूप में कार्य करता है? |
कॉक्स बनाम हिकमैन |
यदि कोई भागीदार जानबूझकर धोखाधड़ी करता है, तो वह कार्य "फर्म का कार्य" माना जाएगा केवल तब: |
जब वह कार्य फर्म के नियमित व्यवसाय में हो |
"भागीदार का कार्य फर्म पर बाध्यकारी है"— यह कथन किस परिस्थिति में असत्य सिद्ध हो सकता है? |
जब कार्य व्यवसायिक प्रकृति का न हो |
कौन-सी स्थिति ‘फर्म का कार्य’ नहीं मानी जाएगी? |
भागीदार द्वारा व्यक्तिगत निवेश करना |
‘एक फर्म का कृत्य' को सिद्ध करने के लिए किसका उपयोग न्यायालय करता है? |
एजेंसी का व्यवहारिक परीक्षण |
यदि कोई ग्राहक किसी भागीदार से माल खरीदता है, और वाद में वह माल दोषपूर्ण निकलता है, तो: |
पूरी फर्म ग्राहक के प्रति उत्तरदायी होगी |
फर्म के लिए कार्य करते हुए यदि भागीदार कोई अनावश्यक नुकसान कर दे, तो क्या होगा? |
फर्म उत्तरदायी होगी क्योंकि यह व्यवसाय का हिस्सा है |
यदि भागीदार कोई कानूनी संविदा करता है फर्म की ओर से, लेकिन बिना अन्य भागीदारों की अनुमति के, तो वह: |
'फर्म का कार्य' कहलाएगा यदि वह व्यवसाय से संबंधित है |
कौन सा केस “फर्म के कार्य” की सीमा और भागीदार की व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर केंद्रित है? |
मुंशी राम बनाम हनुमान दास |
कारोबार (Business) किस धारा में परिभाषित है? |
धारा 2(ख) |
भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932की धारा 2(ख) के अनुसार “कारोबार” में क्या शामिल नहीं है? |
कृषि कार्य |
"कारोबार" की परिभाषा में कौन-सा तत्व अनिवार्य है? |
लाभ कमाने की मंशा |
कौन-सा कार्य "कारोबार" की श्रेणी में नहीं आएगा? |
खेती केवल परिवार के उपभोग के लिए |
कौन-सा केस "कारोबार" की परिभाषा स्पष्ट करता है? |
एम. पी. डेविस बनाम आयकर आयुक्त |
क्या शिक्षा देना "कारोबार" माना जा सकता है? |
हाँ, यदि वह लाभ के उद्देश्य से की जाए |
“व्यापार” शब्द का विस्तार किन कार्यों तक माना गया है? |
व्यापार, विनिर्माण और सेवा |
यदि कोई फर्म केवल धर्मार्थ सेवा करती है, तो क्या वह भागीदारी अधिनियम के अंतर्गत आएगी? |
नहीं, क्योंकि लाभ कमाना आवश्यक है |
“कारोबार” और “फर्म का कार्य” के बीच क्या संबंध है? |
फर्म का कार्य तभी होगा जब वह कारोबारी प्रकृति का हो |
धारा 2(ख) में “व्यापार" शब्द में कौन से कार्य प्रमुख रूप से शामिल हैं? |
उत्पादन, क्रय-विक्रय, सेवाएँ |
क्या भागीदारी फर्म बिना लाभ के उद्देश्य के “कारोबार” कर सकती है? |
नहीं, लाभ उद्देश्य आवश्यक है |
यदि दो व्यक्ति अस्थायी रूप से व्यापार करते हैं, तो क्या वह "कारोबार" कहलाएगा? |
हाँ, यदि उसमें लाभ हो |
किस केस में स्पष्ट किया गया कि भागीदारी केवल तभी मानी जाएगी जब व्यवसायिक उद्देश्य हो? |
दुलीचंद लक्ष्मीनारायण बनाम सीआईटी |
यदि दो लोग मिलकर केवल जमीन खरीदते हैं, और उसे नहीं बेचते, तो क्या वह भागीदारी होगी? |
नहीं, जब तक वे बेचने का उद्देश्य न रखें |
क्या अस्थायी व्यापार (occasional activity) “कारोबार” में गिनी जाती है? |
हाँ, यदि लाभ उद्देश्य हो |
विहित (Prescribed) किस धारा में परिभाषित है? |
धारा 2(ग) |
"विहित" शब्द का तात्पर्य भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932की धारा 2(ग) में क्या है? |
नियमों द्वारा निर्दिष्ट |
धारा 2(ग) के अनुसार "विहित" किसके द्वारा निर्धारित होता है? |
राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा |
यदि कोई नियम “विहित” नहीं है, तो उस स्थिति में कौन-सा प्रावधान लागू होता है? |
सामान्य विधिक सिद्धांत |
"विहित" शब्द का प्रयोग किस धारा में अन्य प्रावधानों को सशक्त करने हेतु किया गया है? |
धारा 4 – भागीदारी की परिभाषा धारा 69 – मुकदमों पर रोक |
कौन-सा कथन “विहित” शब्द के संबंध में असत्य है? |
यह केवल समझौते से बनता है |
क्या राज्य सरकार द्वारा बनाए गए “विहित” नियम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है? |
हाँ, यदि वे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करें |
“निर्धारित प्राधिकारी” शब्द किससे संबंधित है? |
राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी |
“विहित प्रपत्र” (Prescribed form) का उपयोग फर्म द्वारा कब किया जाता है? |
पंजीकरण और उसके संशोधन में |
यदि फर्म पंजीकरण में “विहित” शर्तों का उल्लंघन करती है, तो परिणाम क्या होगा? |
पंजीकरण अमान्य होगा |
“विहित” शब्द की व्याख्या किस केस में की गई? |
राजस्थान राज्य बनाम बसंत नाहटा |
पर व्यक्ति (third party) किस धारा में परिभाषित है? |
धारा 2 (घ) |
पर व्यक्ति (third party) से क्या अभिप्राय है? |
वह किसी फर्म या उसके किसी भागीदार के सम्बन्ध में प्रयुक्त किया गया है ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो फर्म में भागीदार नहीं है |
भारतीय भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932की धारा 2(घ) के अनुसार “व्यक्ति” में क्या सम्मिलित है? |
प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों व्यक्ति |
कौन भागीदारी में "व्यक्ति" के रूप में कार्य नहीं कर सकता? |
नाबालिग |
“व्यक्ति” की व्याख्या में कौन-सा केस महत्त्वपूर्ण है? |
दुलीचंद लक्ष्मीनारायण बनाम सीआईटी (1956) |
क्या कोई एलएलपी (सीमित देयता भागीदारी) भागीदार बन सकती है? |
हाँ, यदि कानूनी रूप से पंजीकृत हो |
ऐसे अन्य सब शब्दों और पदों के, जो एतस्मिन् प्रयुक्त हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं, और भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) में परिभाषित हैं, किस धारा से संम्बन्धित है? |
धारा 2(ङ) |
कौन-सा शब्द भागीदारी अधिनियम में परिभाषित नहीं है, लेकिन संविदा अधिनियम में है? |
प्रतिफल (Consideration) |
धारा 2(ङ) का प्रयोग मुख्यतः किन स्थितियों में किया जाता है? |
जब अधिनियम में कोई शब्द परिभाषित नहीं हो |
भारतीय संविदा अधिनियम की कौन-सी धारा “एजेंसी” (Agency) की अवधारणा स्पष्ट करती है, जिसका प्रयोग भागीदारी में होता है? |
धारा 182 |
क्या भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 में “प्रस्ताव” और “स्वीकृति” की परिभाषा है? |
नहीं |
" निःशुल्क सहमति " (मुक्त सहमति) की वैधानिक परिभाषा कहाँ से अपनाई जाती है, जब भागीदारी अधिनियम में यह शब्द प्रयुक्त हो? |
भारतीय संविदाअधिनियम – धारा 14 |
1872 के अधिनियम संख्यांक 9 के उपबन्धों का लागू होना, किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 3 |
धारा 3 का मूल उद्देश्य क्या है? |
भागीदारी अधिनियम की अपूर्णता को पूरा करना |
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अध्याय – II |
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भागीदारी की प्रकृति (Nature Of Partnership) |
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"भागीदारी," "भागीदार", "फर्म" और "फर्म का नाम" की परिभाषा (Definition of “partnership”, “partner”, “firm” and “firm nam) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 4 |
भागीदारी की परिभाषा भारतीय भागीदारी अधिनियम की किस धारा में दी गई है? |
धारा 4 |
“भागीदार” किसे कहा जाता है? |
जिन्होंने किसी कारबार के लाभों में अंश पाने का करार कर लिया है |
"फर्म" का क्या अर्थ है? |
भागीदारों का समूह |
“फर्म का नाम” किसका सूचक होता है? |
फर्म द्वारा प्रयुक्त व्यवसाय नाम |
भागीदारी की आवश्यक विशेषता क्या है? |
साझे में लाभ की प्राप्ति |
भागीदारी का निर्माण किसके बिना नहीं हो सकता? |
साझे में लाभ की मंशा |
क्या केवल लाभ का बंटवारा भागीदारी की पुष्टि करता है? |
नहीं, यह एकमात्र आधार नहीं है |
यदि A और B व्यापार करते हैं और C को केवल लाभ का हिस्सा मिलता है, तो क्या C भागीदार है? |
नहीं, जब तक वह संविदामें न हो |
“साझेदारी” की व्याख्या में कौन-सा तत्व अनिवार्य नहीं है? |
पंजीकरण |
भागीदारी के लिए न्यूनतम कितने व्यक्ति आवश्यक हैं? |
2 |
क्या एचयूएफ (हिंदू अविभाजित परिवार) को भागीदारी माना जा सकता है? |
नहीं, जब तक अलग संविदान हो |
भागीदारी में "पारस्परिक माध्यम" का क्या अर्थ है? |
एक भागीदार दूसरों के लिए कार्य कर सकता है |
भागीदारी की कौन-सी विशेषता उसे कंपनी से अलग करती है? |
भागीदारों की व्यक्तिगत उत्तरदायित्व |
फर्म का नाम क्या अनिवार्य रूप से भागीदारों के नाम से जुड़ा होना चाहिए? |
नहीं |
भागीदारी प्रास्थिति से सृष्ट नहीं होती (Partnership not created by status) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 5 |
भागीदारी अधिनियम की किस धारा में स्पष्ट किया गया है कि भागीदारी केवल संविदासे सृजित होती है? |
धारा 5 |
“भागीदारी किसी प्रास्थिति (status) से उत्पन्न नहीं होती” — इसका क्या अर्थ है? |
भागीदारी जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है |
भागीदारी के अस्तित्व के लिए आवश्यक है: |
आपसी अनुबंध |
किस केस में यह सिद्धांत स्थापित हुआ कि भागीदारी “स्थिति" से उत्पन्न नहीं होती? |
दुलीचंद लक्ष्मीनारायण बनाम सीआईटी |
क्या पति-पत्नी अपने वैवाहिक संबंध के आधार पर भागीदार माने जा सकते हैं? |
नहीं, जब तक वे संविदान करें |
कौन भागीदारी स्थापित करने का सर्वोपरि तत्व है? |
संविदा |
क्या कोई व्यक्ति भागीदार बन सकता है यदि वह केवल लाभ साझा कर रहा है, पर संविदा में नहीं है? |
नहीं |
यदि एक विधवा महिला अपने पति की भागीदारी से लाभ ले रही है, क्या वह भागीदार है? |
नहीं |
किस निर्णय में स्पष्ट किया गया कि एचयूएफ का “कर्मचारी” (कत्र्ता) भागीदारी कर सकता है पर एचयूएफ स्वयं भागीदार नहीं हो सकती? |
दुलीचंद बनाम सीआईटी |
“प्रास्थिति से सृष्ट नहीं होती” का कानूनी परिणाम क्या होता है? |
बिना संविदाभागीदारी संभव नहीं |
भागीदार के अस्तित्व के अवधारण का ढंग (Mode of determining existence of partnership) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 6 |
भागीदारी के अस्तित्व की जांच किस धारा के अंतर्गत की जाती है? |
धारा 6 |
भागीदारी के अस्तित्व की असली परीक्षा क्या है? |
साझा नियंत्रण और एजेंसी |
"पारस्परिक माध्यम" का सिद्धांत किस धारा के अंतर्गत मुख्य रूप से प्रकट होता है? |
धारा 6 |
भागीदारी को सिद्ध करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व क्या है? |
एक भागीदार द्वारा दूसरों को बाध्य करने की शक्ति |
यदि एक व्यक्ति लाभ में हिस्सा लेता है लेकिन व्यापार के प्रबंधन में नहीं है, तो वह क्या है? |
लाभार्थी |
भागीदारी के अस्तित्व की जांच के लिए न्यायालय किन बातों को नहीं देखेगा? |
पंजीकरण की स्थिति |
फर्जी भागीदारी को न्यायालय में कैसे पहचाना जा सकता है? |
व्यवहार और नियंत्रण से |
क्या केवल लाभ में हिस्सा लेना भागीदारी साबित करता है? |
नहीं |
किस केस में, सिद्ध हुआ, भागीदारी का निर्धारण व्यवहार से होगा? |
सीआईटी बनाम खेतान एंड कंपनी |
कौन-सा कथन गलत है? |
सभी लाभार्थी भागीदार होते हैं |
भागीदारी के निर्धारण में मूल उद्देश्य क्या होता है? |
एजेंसी |
इच्छाधीन भागीदारी (Partnership at will) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 7 |
इच्छाधीन भागीदारी की सबसे मुख्य विशेषता क्या है? |
इसे कभी भी नोटिस देकर समाप्त किया जा सकता है |
इच्छाधीन भागीदारी कब अस्तित्व में मानी जाती है? |
जब न समय तय हो न विघटन की शर्त |
कौन-सी स्थिति “इच्छाधीन साझेदारी” नहीं होगी? |
भागीदारी केवल एक प्रोजेक्ट के लिए है |
इच्छाधीन भागीदारी के समापन के लिए आवश्यक है: |
लिखित नोटिस |
"इच्छानुसार साझेदारी" शब्द पहली बार प्रमुख रूप से किस केस में व्याख्यायित किया गया? |
नारायणप्पा बनाम भास्कर |
इच्छाधीन भागीदारी समाप्त होने पर परिसमापन किस आधार पर होगा? |
भागीदारी अधिनियम की धारा 43 से |
किस केस में कहा गया कि भागीदारी तब तक समाप्त नहीं होती जब तक सही विधि से नोटिस न दिया जाए? |
श्रीमती. प्रेमवती बनाम सीआईटी |
इच्छाधीन भागीदारी में भागीदारों की संख्या पर कोई प्रभाव पड़ता है? |
नहीं, कोई सीमा नहीं |
इच्छाधीन भागीदारी में पार्टनर की मृत्यु होने पर: |
भागीदारी स्वतः समाप्त होती है |
यदि किसी फर्म में 5 साल की अवधि तय की गई है, तो क्या वह इच्छाधीन फर्म होगी? |
नहीं |
क्या इच्छाधीन भागीदारी में लाभ-हानि साझा करने की व्यवस्था जरूरी होती है? |
हाँ |
क्या एक भागीदार बिना नोटिस दिए इच्छाधीन भागीदारी को समाप्त कर सकता है? |
नहीं |
विशिष्ट भागीदारी (Particular partnership) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 8 |
कौन-सी भागीदारी “विशिष्ट भागीदारी” कहलाएगी? |
एक बार के आयात सौदे के लिए बनी साझेदारी |
विशिष्ट भागीदारी का प्रमुख तत्व क्या होता है? |
विशिष्ट उद्देश्य या उपक्रम |
यदि भागीदारी किसी एक प्रोजेक्ट जैसे "एक इमारत का निर्माण" के लिए बनी हो, तो वह: |
विशिष्ट साझेदारी |
जब विशेष कार्य पूरा हो जाता है, तो विशिष्ट साझेदारी: |
स्वतः समाप्त हो जाती है |
विशिष्ट भागीदारी समाप्त होने की स्थिति में क्या आवश्यक है? |
कार्य की पूर्णता |
किस केस में यह कहा गया कि विशिष्ट उद्देश्य पूर्ण होने पर भागीदारी समाप्त मानी जाएगी? |
बोडा नारायण मूर्ति बनाम वेंकट सुब्बा राव |
विशिष्ट भागीदारी में यदि उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, तो: |
पुनः संविदाआवश्यक होता है |
क्या एक फर्म सामान्य और विशिष्ट दोनों प्रकार की भागीदारी कर सकती है? |
हाँ, अलग अनुबंधों के साथ |
विशिष्ट भागीदारी में “नोटिस द्वारा समाप्ति” की आवश्यकता कब होती है? |
नहीं होती, स्वतः समाप्त हो जाती है |
क्या विशिष्ट भागीदारी को “इच्छाधीन” भागीदारी में बदला जा सकता है? |
हाँ, नए समझौते से |
यदि विशिष्ट कार्य पूरा होने के वाद भागीदार व्यापार जारी रखें, तो: |
नई भागीदारी मानी जाएगी |
विशिष्ट भागीदारी का पंजीकरण: |
आवश्यक नहीं है |
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अध्याय- III |
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भागीदारों के एक दूसरे के प्रति सम्बन्ध (Relations Of Partners To One Another) |
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भागीदारों के साधारण कर्तव्य (General duties of partners) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 9 |
भागीदारों के बीच "उत्तम विश्वास" का सिद्धांत किस धारा में वर्णित है? |
धारा 9 |
कौन-सा भागीदारों का एक सामान्य कर्तव्य नहीं है? |
व्यक्तिगत लाभ को फर्म से छुपाना |
"परम सद्भावना" सिद्धांत किस केस में स्पष्ट किया गया? |
बेंटले बनाम क्रेवेन |
भागीदारों को फर्म की भलाई के लिए क्या बनाए रखना होता है? |
ईमानदारी और विश्वास |
कौन-सा एक साधारण कर्तव्य है? |
फर्म का हित सर्वोपरि रखना |
किसी भागीदार द्वारा छिपाए गए व्यक्तिगत लाभ को किस धारा के तहत फर्म वापस ले सकती है? |
धारा 9 |
व्यक्तिगत लाभ फर्म को देना होगा, से संम्बन्धित केस कौन सा है? |
बेंटले बनाम क्रेवेन |
भागीदारों के बीच यदि विश्वास टूट जाए, तो इसका सबसे बड़ा प्रभाव क्या होता है? |
भागीदारी विघटित हो सकती है |
भागीदारों का सबसे पहला नैतिक कर्तव्य क्या है? |
एक-दूसरे से विश्वास बनाए रखना |
“प्रत्ययी संबंध” का क्या अर्थ है? |
विश्वास पर आधारित संबंध |
यदि भागीदार फर्म के हित में काम करता है, लेकिन दूसरों को नुकसान होता है, तो: |
वह निर्दोष है |
भागीदारी अधिनियम की किस धारा में "भागीदारों की पारस्परिक जिम्मेदारियों" की शुरुआत होती है? |
धारा 9 |
यदि एक भागीदार फर्म के नाम पर किसी सौदे से लाभ कमाए, तो: |
उसे सभी भागीदारों को देना होगा |
कपट से कारित हानि के लिए क्षतिपूर्ति करने का कर्तव्य (Duty to indemnify for loss caused by fraud) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 10 |
धारा 10 का संबंध किस प्रकार की जिम्मेदारी से है? |
कपट से हुई हानि की क्षतिपूर्ति |
यदि कोई भागीदार जानबूझकर फर्म को नुकसान पहुँचाता है, तो वह: |
क्षतिपूर्ति के लिए बाध्य होता है |
धारा 10 के तहत कपट (Fraud) का अर्थ होता है: |
जानबूझकर छुपाया गया सच या झूठा कार्य |
किस भारतीय निर्णय में भागीदार की कपटपूर्ण कार्रवाई पर मुआवजा अनिवार्य माना गया? |
सुरेश कुमार बनाम ओम प्रकाश |
कपट का सिद्धांत किस प्रकार का संबंध दर्शाता है? |
विश्वास पर आधारित साझेदारी |
क्या कपट साबित करने के लिए इरादा (intent) आवश्यक होता है? |
हाँ |
धारा 10 के अनुसार, यदि कोई भागीदार धोखे से फर्म का ग्राहक अपने निजी व्यापार के लिए ले जाता है, तो: |
उसे लाभ फर्म को लौटाना होगा |
भागीदारों के अधिकारों और कर्तव्यों का अवधारण भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा होगा (Determination of rights and duties of partners by contract between the partners. Agreements in restraint of trade) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 11 |
भागीदारों के आपसी अधिकार और कर्तव्यों को नियंत्रित किया जाता है: |
भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा |
धारा 11 किस पर बल देती है? |
भागीदारों की स्वतंत्रता पर |
धारा 11 के अनुसार भागीदार आपसी समझौते से कौन-कौन से अधिकार तय कर सकते हैं? |
लाभ का अनुपात |
किस केस में कहा गया कि भागीदारी समझौता भागीदारों के संबंधों का आधार होता है? |
राम नारायण बनाम मालीराम |
भागीदारों के बीच का समझौता हो सकता है: |
मौखिक या लिखित दोनों |
भागीदारी संविदा में संशोधन किया जा सकता है: |
भागीदारों की सर्वसम्मति से |
यदि भागीदारों में कोई नया पार्टनर शामिल हो, तो अनुबंध: |
संशोधित किया जाना चाहिए |
भागीदारी संविदा में अधिकारों का निर्धारण नहीं किया गया हो, तो कौन-सी धारा लागू होगी? |
धारा 12-13 (default provisions) |
यदि कोई भागीदार फर्म के लाभ को बदलना चाहता है, तो: |
सभी भागीदारों की सहमति लेनी होगी |
कारबार का संचालन (conduct of the business) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 12 |
धारा 12 के अनुसार, फर्म के व्यवसाय का संचालन किसके द्वारा किया जाता है? |
बहुमत से |
धारा 12 के अनुसार, असाधारण मामलों में निर्णय कैसे लिए जाते हैं? |
सभी भागीदारों की सहमति से |
धारा 12 के अनुसार, भागीदार को फर्म के विषय में: |
जानकारी साझा करने का दायित्व है |
धारा 12 के अंतर्गत निर्णय लेने का अधिकार होता है: |
बहुमत को |
असामान्य या विशेष महत्व के मामलों में: |
सभी भागीदारों की सहमति जरूरी होती है |
फर्म के संचालन में निष्क्रिय भागीदार: |
निर्णय में भाग ले सकता है |
धारा 12 के अनुसार, भागीदार को फर्म की बुक्स देखने का: |
हर भागीदार को अधिकार है |
पारस्परिक अधिकार और दायित्व (Mutual rights and liabilities) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 13 |
यदि एक भागीदार ने भागीदारी की सहमति के बिना कोई व्यक्तिगत खर्च भागीदारी फंड से किया है, तो यह क्या उल्लंघन माना जाएगा? |
विश्वास उल्लंघन |
यदि भागीदारी में एक भागीदार ने आपात स्थिति में फर्म को हानि से बचाने के लिए खुद के पैसे लगाए, तो क्या उसे मुआवज़ा मिलेगा? |
हां, उचित मुआवज़ा मिलेगा |
भागीदार को भागीदारी की पूंजी पर मिलने वाला ब्याज किस शर्त पर देय है? |
केवल लाभ होने पर |
एक भागीदार की लापरवाही से फर्म को हानि होती है। धारा 13 के अनुसार, परिणामस्वरूप उसे क्या करना होगा? |
नुकसान की भरपाई करनी होगी |
यदि भागीदार अपनी गलती से नुकसान करता है, तो वह किस सिद्धांत के अंतर्गत उत्तरदायी होता है? |
प्रत्ययी जिम्मेदारी |
फर्म की सम्पत्ति (property of the firm) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 14 |
धारा 14 के अनुसार फर्म की संपत्ति क्या कहलाती है? |
फर्म के व्यापार में प्रयुक्त और उस हेतु खरीदी गई संपत्ति |
फर्म की संपत्ति से प्राप्त आय किसकी होती है? |
भागीदारों के बीच विभाजित |
किस मामले में सिद्धांत स्थापित हुआ, कि भागीदार द्वारा फर्म को दी गई संपत्ति, फर्म की मानी जाएगी? |
रघुनंदन बनाम हरमुख राय (1942) |
यदि किसी संपत्ति की खरीदारी भागीदारों ने फर्म के नाम पर की हो, तो वह- |
फर्म की संपत्ति मानी जाएगी |
किस मामले के अनुसार, जब कोई संपत्ति भागीदार के नाम पर हो लेकिन फर्म के फंड से खरीदी गई हो, तब वह संपत्ति फर्म की संपत्ति मानी जाएगी? |
राम नारायण बनाम मूलचंद (1940) |
राम, श्याम और मोहन एक फर्म के भागीदार हैं। श्याम ने अपनी दुकान फर्म को बिना किसी लिखित समझौते के व्यापार हेतु दी। अब वह क्या मानी जाएगी? |
फर्म की संपत्ति |
फर्म की सम्पत्ति का उपयोजन (Application of the property of the firm) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 15 |
फर्म की संपत्ति का उपयोग सबसे पहले किस उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए? |
फर्म के व्यापार संचालन हेतु |
यदि कोई भागीदार फर्म की मशीनरी का उपयोग अपने व्यक्तिगत व्यवसाय में करता है, तो यह किस प्रकार का उल्लंघन है? |
भागीदारी संबंधी कर्तव्यों का उल्लंघन |
फर्म की संपत्ति को "फर्म की" क्यों माना जाता है, न कि व्यक्तिगत भागीदार की? |
क्योंकि वह व्यापार के लाभ के लिए प्रयुक्त होती है |
किस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फर्म की संपत्ति का प्रयोग व्यवसाय हेतु अनिवार्य है? |
नारायणप्पा बनाम भास्कर कृष्णप्पा (1966) |
भागीदारों की अनुपस्थिति में, संपत्ति का उपयोग किसके दिशा-निर्देशों से किया जा सकता है? |
भागीदारी समझौते के अनुसार |
किस मामले में आयकर न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया, फर्म की संपत्ति से हुई कमाई ही व्यावसायिक मानी जाएगी? |
सीआईटी बनाम ए.डब्ल्यू. फिग्गीज एंड कंपनी (1953) |
एक फर्म के भागीदारों ने भागीदारी समाप्त होने के वाद संपत्ति को आपस में बाँट लिया। यह कब वैध माना जाएगा? |
जब सभी देनदारों का भुगतान हो चुका हो |
फर्म की संपत्ति का लाभ प्राप्त करने का प्राथमिक अधिकार किसका होता है? |
फर्म के देनदारों का |
फर्म की संपत्ति का प्रयोग निजी उपभोग के लिए कब वैध माना जा सकता है? |
जब भागीदारी समझौते में इसकी अनुमति हो |
भागीदारों द्वारा उपाजित वैयक्तिक लाभ (Personal profits earned by partners) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 16 |
धारा 16 के अंतर्गत कौन-सी स्थिति "वैयक्तिक लाभ" के अंतर्गत आएगी? |
भागीदार फर्म के नाम से बाहर सौदा करता है |
यदि कोई भागीदार बिना फर्म को जानकारी दिए, उसी प्रकार का व्यापार अलग से करता है और लाभ कमाता है, तो वह — |
फर्म के साथ लाभ साझा करने का दायित्व है |
वैयक्तिक लाभ पर फर्म का अधिकार से संम्बन्धित केस कौन सा है? |
लोच बनाम लिनम (1857) |
यदि भागीदार ने फर्म की सम्पत्ति का उपयोग कर किसी तीसरे पक्ष से कमीशन प्राप्त किया, तो यह — |
फर्म को देना होगा |
कोई भागीदार फर्म के ग्राहक को निजी सेवाएं देकर अतिरिक्त आय अर्जित करता है। यह — |
फर्म के साथ लाभ साझा करना अनिवार्य है |
मोहन एक भागीदार है। वह फर्म की जानकारी का उपयोग कर अलग से समान व्यापार शुरू करता है। क्या मोहन को लाभ साझा करना होगा? |
हां, यह फर्म का उल्लंघन है |
फर्म की नीतियों के अनुसार यदि कोई भागीदार फर्म से संबंधित सौदे करता है, तो वह — |
फर्म को सूचित करना चाहिए और लाभ साझा करना चाहिए |
भागीदारों के अधिकार और कर्तव्य, फर्म में तब्दीली होने के पश्चात् ,फर्म की अवधि के अवसान के पश्चात्, और- जहां कि अतिरिक्त उपक्रम किए गए हों (Rights and duties of partners— after a change in the firm, after the expiry of the term of the firm, and where additional undertakings are carried out) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 17 |
धारा 17 का मुख्य उद्देश्य क्या है? |
भागीदारों के अधिकारों और कर्तव्यों की निरंतरता को विनियमित करना |
जब फर्म में नया भागीदार जोड़ा जाता है, तो मौजूदा भागीदारों के अधिकार और दायित्व — |
यथावत बने रहते हैं, जब तक कि कोई भिन्न संविदान हो |
भागीदार की मृत्यु के वाद यदि फर्म का व्यवसाय जारी रहता है, तो मृत भागीदार के उत्तराधिकारी को लाभ मिलेगा केवल जब — |
भागीदारी संविदा में उल्लेख हो |
यदि कोई भागीदार सेवानिवृत्त होता है, तो उसके दायित्व समाप्त होते हैं — |
सार्वजनिक सूचना देने के वाद |
किस मामले में कोर्ट ने निर्णय दिया, फर्म का पुनर्गठन मृत भागीदार के दायित्व को समाप्त नहीं करता? |
दुली चंद बनाम मोहम्मद। यामीन (1973) |
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अध्याय IV |
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पर-व्यक्तियों से भागीदारों के सम्बन्ध (Relations Of Partners to Third Parties) |
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भागीदार फर्म का अधिकर्ता है (Partner to be agent of the firm) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 18 |
भागीदारी अधिनियम की धारा 18 के अनुसार, प्रत्येक भागीदार फर्म के लिए किस रूप में कार्य करता है? |
एजेंट |
किस सिद्धांत पर धारा 18 आधारित है? |
एजेंसी सिद्धांत |
किस मामले में यह स्पष्ट किया गया कि भागीदार एजेंट की तरह कार्य करता है? |
स्किप बनाम हारवुड (1851) |
किस सिद्धांत की पुष्टि करता है, यदि एजेंट ने अपने अधिकार का उल्लंघन किया हो, तो भी फर्म उत्तरदायी हो सकती है? |
हैमलिन बनाम ह्यूस्टन एंड कंपनी (1903) |
एजेंसी संबंध में, भागीदार का कार्य किसे बाध्य करता है? |
पूरी फर्म को |
यदि भागीदार एजेंसी से बाहर जाकर संविदा करता है, तो फर्म — |
उत्तरदायी नहीं होती |
भागीदार का फर्म के अभिकर्ता के नाते विवक्षित प्राधिकार (Implied authority of partner as agent of the firm) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 19 |
धारा 19 के अनुसार भागीदार का विवक्षित प्राधिकार (Implied Authority) किस पर आधारित होता है? |
व्यापार की प्रकृति पर |
कौन-सा कार्य विवक्षित प्राधिकार के अंतर्गत नहीं आता? |
न्यायालय में मुकदमा करना |
विवक्षित प्राधिकार की सीमा का उल्लंघन होने पर फर्म कब उत्तरदायी होती है? |
जब स्पष्ट प्राधिकरण दिया गया हो |
भागीदार द्वारा किया गया कौन-सा कार्य "फर्म के सामान्य व्यापार" में नहीं गिना जाता? |
संपत्ति बेच देना |
किस मामले के अनुसार विवक्षित प्राधिकार में संपत्ति विक्रय शामिल नहीं है? |
चरण दास बनाम कमला कुँवर (1917) |
किस मामले से क्या स्पष्ट हुआ, यदि कार्य सामान्य व्यापार से बाहर हो तो स्पष्ट अनुमति आवश्यक है? |
हेज एंड गोले लिमिटेड बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (1987) |
किस मामले में व्याख्या की गई, भागीदार का विवक्षित अधिकार सीमित है? |
गुडविन बनाम रॉबर्ट्स (1875) |
एक भागीदार ने फर्म की ओर से अदालत में मुकदमा दायर किया। क्या यह विवक्षित प्राधिकार में आता है? |
नहीं, जब तक कि स्पष्ट प्राधिकरण न हो |
राम एक भागीदार है। उसने फर्म के पैसे से एक निजी गाड़ी खरीद ली। क्या यह विवक्षित प्राधिकार है? |
नहीं |
भागीदार के विवक्षित प्राधिकार का विस्तारण और निर्वन्धन (Extension and restriction of partner’s implied authority) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 20 |
किस स्थिति में भागीदार के विवक्षित प्राधिकार को तृतीय पक्ष के विरुद्ध रोका जा सकता है? |
जब तृतीय पक्ष को इसकी सूचना दी गई हो |
किस सिद्धांत को स्पष्ट करता है, तृतीय पक्षों के अधिकार तब तक सुरक्षित हैं जब तक उन्हें सीमाओं की सूचना न दी जाए? |
स्कार्फ बनाम जार्डाइन (1882) |
किस मामले में निर्णय था, विवक्षित प्राधिकार की सीमा तभी लागू होती है जब तृतीय पक्ष को सूचना दी गई हो? |
वाघजी बनाम गंडेचा (1954) |
यदि किसी भागीदार का विवक्षित प्राधिकार सीमित कर दिया जाए और वह बिना जानकारी के तृतीय पक्ष से सौदा करे, तो क्या होगा? |
फर्म उत्तरदायी होगी क्योंकि तृतीय पक्ष को जानकारी नहीं दी गई |
यदि भागीदारों ने आपसी संविदामें विवक्षित प्राधिकार बढ़ा दिया, और तृतीय पक्ष को इसकी जानकारी दी गई, तो — |
यह अधिकार वैध माना जाएगा |
धारा 20 का मुख्य उद्देश्य क्या है? |
भागीदार के अधिकारों को नियंत्रित करना और तृतीय पक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करना |
भागीदार का आपात में प्राधिकार (Partner’s authority in an emergency) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 21 |
किस स्थिति में भागीदार फर्म को बाध्य कर सकता है, भले ही उसका कार्य विवक्षित प्राधिकार से बाहर हो? |
जब वह आपातकालीन स्थिति में विधिसम्मत कार्य करे |
आपातकाल में किए गए भागीदार के कार्य को फर्म को बाध्यकारी बनाने के लिए कौन-सी शर्त आवश्यक है? |
कार्य गैर-कानूनी न हो |
धारा 21 के तहत भागीदार द्वारा कार्य किया जा सकता है यदि — |
वह फर्म को बचाने के लिए आवश्यक हो |
"आपातकाल" का क्या अर्थ है इस धारा में? |
ऐसी स्थिति जिसमें त्वरित निर्णय फर्म को हानि से बचा सकता है |
किस सिद्धांत को स्पष्ट करता है, आपात स्थिति में भागीदार का कार्य फर्म को बाध्य कर सकता है? |
बैकहाउस बनाम चार्लटन (1878) |
आपातकालीन अधिकार और भागीदार का एजेंट होना से संम्बन्धित केस कौन सा है? |
कॉक्स बनाम हिकमैन (1860) |
किस केस में कोर्ट ने माना कि भागीदार ने फर्म की रक्षा के लिए समय पर कार्य किया था, इसलिए वह कार्य मान्य है? |
बैकहाउस बनाम चार्लटन |
यदि भागीदार ने आपात स्थिति में कानूनी और तर्कसंगत कार्य किया, तो फर्म — |
बाध्य होती है |
भागीदार रमेश ने फर्म के गोदाम में आग लगने पर तुरंत फायर ब्रिगेड को बुलाया और उपकरण किराए पर लिए। क्या फर्म इस पर उत्तरदायी होगी? |
हां, क्योंकि यह आपातकालीन स्थिति थी |
यदि एक भागीदार ने बिना अन्य भागीदारों की सहमति के फर्म के बैंक अकाउंट से आपातकाल में भुगतान कर दिया, तो — |
फर्म बाध्य होगी यदि कार्य विवेकपूर्ण था |
आपातकाल में भागीदार का अधिकार किसकी दृष्टि से आंका जाएगा? |
एक सामान्य विवेकशील व्यक्ति की |
फर्म को आबद्ध करने के लिए कार्य करने का ढंग, किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 22 |
धारा 22 किस विषय से संबंधित है? |
फर्म को बाध्य करने का ढंग (Mode of doing act to bind firm) |
फर्म को बाध्य करने के लिए कार्य करने के लिए कौन सी दो शर्तें आवश्यक हैं? |
व्यापार के सामान्य संचालन और फर्म के नाम पर कार्य |
किस मामले में कोर्ट ने कहा, फर्म तभी बाध्य होती है जब कार्य उसके नाम पर हो? |
पटेल बनाम रामजी (1964) |
किस मामले में स्पष्ट किया गया कि फर्म का नाम न हो तो फर्म बाध्य नहीं होगी? |
मेसर्स कॉक्स एंड किंग्स बनाम इंडियन एयरलाइंस |
भागीदार द्वारा कार्य को फर्म को बाध्यकारी बनाने के लिए कौन सा नियम लागू होता है? |
धारा 22 |
धारा 22 के अंतर्गत फर्म को बाध्यकारी कोई भी कार्य होना चाहिए — |
व्यापार के सामान्य अभ्यास में और फर्म के नाम पर |
भागीदार द्वारा स्वीकृतियों का प्रभाव (Effect of admissions by a partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 23 |
धारा 23 का प्रमुख विषय क्या है? |
भागीदार द्वारा स्वीकृतियों का फर्म पर प्रभाव |
किस स्थिति में भागीदार की स्वीकारोक्ति पूरी फर्म को बाध्य करती है? |
जब वह व्यापार के संचालन में की गई हो |
भागीदार द्वारा फर्म के व्यवसाय के दौरान की गई एक स्वीकारोक्ति — |
पूरी फर्म को बाध्य करती है |
धारा 23 की प्रमुख शर्त क्या है जिससे फर्म भागीदार की स्वीकारोक्ति से बाध्य होती है? |
स्वीकृति व्यापार के संचालन में होनी चाहिए |
यदि भागीदार न्यायालय में कहता है कि “हमने डिलीवरी नहीं की” और यह कथन फर्म के नाम से किया गया हो, तो — |
फर्म बाध्य होगी |
कार्यकारी भागीदार को दी गई सूचना का प्रभाव किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 24 |
धारा 24 किससे संबंधित है? |
कार्यकारी भागीदार को दी गई सूचना का प्रभाव (Effect of notice to acting partner) |
यदि कोई ग्राहक कार्यकारी भागीदार को कोई महत्वपूर्ण सूचना देता है, तो वह सूचना — |
पूरी फर्म के लिए मान्य मानी जाएगी |
"कार्यकारी भागीदार" का क्या अर्थ है? |
ऐसा भागीदार जो फर्म के प्रबंधन में सक्रिय हो |
सूचना या ज्ञान किस स्थिति में पूरी फर्म के लिए बाध्यकारी होता है? |
यदि वह कार्यकारी भागीदार को व्यापार के दौरान दी जाए |
कार्यकारी भागीदार को दी गई सूचना, पूरी फर्म पर लागू होती है, से संम्बन्धित केस कौन सा है? |
पार्टनरशिप फर्म बनाम एक्स (एआईआर 1955) |
धारा 24 का उद्देश्य क्या है? |
सूचना के प्रभाव को संपूर्ण फर्म पर लागू करना |
यदि कोई तृतीय पक्ष कार्यकारी भागीदार को जोखिम की सूचना देता है और वह उसे अन्य भागीदारों तक नहीं पहुंचाता, तब — |
पूरी फर्म उत्तरदायी मानी जाएगी |
सूचना का प्रभाव कब नहीं माना जाएगा? |
जब वह सेवानिवृत्त भागीदार को दी गई हो |
फर्म के कार्यों के लिए भागीदार का दायित्व (Liability of a partner for acts of the firm) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 25 |
धारा 25 के अनुसार भागीदारों की देयता कैसी होती है? |
संयुक्त और पृथक दोनों |
भागीदार तब तक उत्तरदायी होता है जब तक — |
वह भागीदारी में बना रहे |
भागीदार की संयुक्त देयता का क्या अर्थ है? |
सभी भागीदार मिलकर और व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी हैं |
किस मामले में कोर्ट ने निर्णय दिया कि, भागीदार संयुक्त और पृथक रूप से उत्तरदायी होते हैं? |
जयंतीलाल बनाम द्वारकादास (1954) |
किस मामले के अनुसार भागीदार अपने द्वारा किए गए गैरकानूनी कार्यों के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होता है? |
हैमलिन बनाम ह्यूस्टन एंड कंपनी (1903) |
तीन भागीदारों की फर्म में एक भागीदार ने गलत माल की डिलीवरी कर दी। ग्राहक ने क्षति का दावा किया। कौन उत्तरदायी होगा? |
सभी भागीदार संयुक्त रूप से |
संयुक्त और पृथक देयता में क्या फर्क है? |
संयुक्त देयता में सभी मिलकर जिम्मेदार, पृथक में व्यक्तिगत रूप से |
भागीदार के सदोष कार्यों के लिए फर्म का दायित्व (Liability of the firm for wrongful acts of a partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 26 |
फर्म कब भागीदार के दोषपूर्ण कार्य के लिए उत्तरदायी होती है? |
जब वह कार्य व्यापार के संचालन में किया गया हो |
‘दोषपूर्ण कार्य’ का अर्थ क्या है? |
लापरवाही या धोखाधड़ी |
क्या फर्म भागीदार के अवैध कार्यों के लिए भी उत्तरदायी हो सकती है? |
केवल अगर वह कार्य व्यापार के अंतर्गत हो |
किस मामले में कोर्ट ने निर्णय दिया, फर्म, भागीदार के गलत कार्यों के लिए उत्तरदायी है अगर वह व्यापार के दौरान किए गए हों? |
हैमलिन बनाम ह्यूस्टन एंड कंपनी (1903) |
किस मामले में सिद्धांत स्थापित हुआ, एजेंट द्वारा की गई धोखाधड़ी के लिए नियोक्ता (या फर्म) उत्तरदायी होती है? |
लॉयड बनाम ग्रेस, स्मिथ एंड कंपनी (1912) |
किस मामले के अनुसार फर्म अपने एजेंट की लापरवाही के लिए जिम्मेदार होती है? |
बारविक बनाम इंग्लिश ज्वाइंट स्टॉक बैंक (1867) |
एक भागीदार ने ग्राहक से धोखाधड़ी करके अधिक राशि वसूल की। यह व्यापार के दौरान हुआ। ग्राहक ने केस फाइल किया। कौन जिम्मेदार होगा? |
फर्म पूरी तरह जिम्मेदार होगी |
एक भागीदार ने ग्राहक को नकली माल बेचा, लेकिन बाकी भागीदारों को इस बारे में जानकारी नहीं थी। फिर भी फर्म – |
उत्तरदायी होगी |
क्या फर्म किसी ऐसे नुकसान के लिए जिम्मेदार होगी जो भागीदार की जानबूझकर की गई धोखाधड़ी से हुआ हो? |
हां, यदि वह व्यापार के दौरान हुआ हो |
भागीदारों द्वारा दुरूपयोग के लिए फर्म का दायित्व (Liability of firm for misapplication by partners) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 27 |
फर्म कब किसी भागीदार द्वारा की गई दुरुपयोग की क्रिया के लिए जिम्मेदार होगी? |
जब वह कार्य फर्म के अधिकार क्षेत्र में किया गया हो |
भागीदार का दुरुपयोग कब फर्म की देयता बनाता है? |
जब वह कार्य व्यापार के दौरान हुआ हो |
व्यपदेशन (Holding out) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 28 |
धारा 28 किन परिस्थितियों में लागू होता है? |
जब कोई व्यक्ति खुद को भागीदार बताता है या फर्म ऐसा प्रस्तुत करती है |
यदि कोई व्यक्ति फर्म के भागीदार न होते हुए भी भागीदार के रूप में कार्य करता है और तीसरा पक्ष उस पर विश्वास करता है, तो — |
वह व्यक्ति देनदारियों के लिए उत्तरदायी होगा |
किस मामले में कोर्ट ने सिद्धांत को स्थापित किया, बाहर पकड़े के द्वारा भागीदारी की जिम्मेदारी उत्पन्न हो सकती है? |
लेक बनाम ड्यूक ऑफ आर्गिल (1844) |
सुरेश की फोटो कंपनी की वेबसाइट पर भागीदार के रूप में लगाई गई थी, जबकि वह असल में भागीदार नहीं था। ग्राहक ने उसके आधार पर विश्वास किया। कौन उत्तरदायी होगा? |
सुरेश उत्तरदायी होगा |
एक व्यक्ति जो फर्म में भागीदार नहीं है, फर्म के लेटरहेड का उपयोग करके ग्राहक से पैसा लेता है। यह किस धारा के अंतर्गत आता है? |
धारा 28 |
होल्डिंग आउट के अंतर्गत कोई देनदारी कब नहीं बनती? |
जब प्रतिनिधित्व न किया गया हो |
भागीदार के हित के अन्तरिती अधिकार (Rights of transferee of a partner’s interest) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 29 |
भागीदार के हित का अन्तरण किन चीजों को प्रभावित नहीं करता? |
फर्म का संचालन |
किस मामले के अनुसार ट्रांसफरी को केवल लाभ में हिस्सा मिलता है? |
सुरेश कुमार बनाम अमृत लाल (1992) |
किस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रांसफरी फर्म का भागीदार नहीं बनता? |
बालमुकुंद बनाम कमला वती (1957) |
किस मामले में निर्णय था कि ट्रांसफरी केवल फर्म के समाप्त होने पर हिसाब ले सकता है? |
राजिंदर कुमार बनाम करतार सिंह (2005) |
हित के ट्रांसफर के पश्चात् ट्रांसफरी की भूमिका होती है — |
लाभार्थी की |
धारा 29 का उद्देश्य क्या है? |
ट्रांसफरी के अधिकारों की सीमाएं तय करना |
किसी ट्रांसफरी को भागीदार का अधिकार कैसे प्राप्त होता है? |
फर्म के अन्य भागीदारों की सहमति से |
अप्राप्तक्यों को भागीदारी के फायदों में सम्मिलित करना (Minors admitted to the benefits of partnership) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 30 |
क्या किसी नाबालिग को भागीदार बनाया जा सकता है? |
नहीं, लेकिन लाभार्थी बनाया जा सकता है |
धारा 30 के अनुसार, नाबालिग को फर्म में कैसे सम्मिलित किया जा सकता है? |
लाभों में हिस्सेदार के रूप में |
नाबालिग को भागीदारी में सम्मिलित करने के लिए आवश्यक शर्त क्या है? |
सभी भागीदारों की सहमति |
नाबालिग भागीदार की देनदारी किस सीमा तक होती है? |
सीमित लाभ तक |
नाबालिग कब फर्म का पूर्ण भागीदार बन सकता है? |
18 वर्ष की आयु पूरी होने के वाद यदि वह भागीदारी जारी रखने की इच्छा व्यक्त करे |
किस मामले के अनुसार नाबालिग का लाभांश कर योग्य होता है? |
द्वारकानाथ बनाम आयकर आयुक्त (1963) |
क्या नाबालिग फर्म के निर्णयों में मतदान कर सकता है? |
नहीं |
अगर कोई नाबालिग भागीदारी में बिना सभी भागीदारों की सहमति के शामिल किया जाए तो — |
संविदा अवैध माना जाएगा |
धारा 30 किस सिद्धांत पर आधारित है? |
संविदा अधिनियम की धारा 11 |
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अध्याय- V |
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अन्दर आने वाले और बाहर जाने वाले भागीदार (Incoming And Outgoing Partners) |
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भार्गीदार का प्रविष्ट किया जाना (Introduction of a partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 31 |
धारा 31 के अनुसार किसी नए भागीदार को फर्म में शामिल करने के लिए आवश्यक है — |
सभी मौजूदा भागीदारों की सहमति |
क्या फर्म में नया भागीदार बिना मौजूदा भागीदारों की सहमति के शामिल हो सकता है? |
नहीं |
नए भागीदार को शामिल करने की अनुमति किस परिस्थिति में नहीं चाहिए होती? |
जब संविदा में स्वचालित प्रविष्टि का प्रावधान हो |
किस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया, कि नए भागीदार की प्रविष्टि सभी की सहमति से होती है? |
अद्दंकी नारायणप्पा बनाम भास्कर कृष्णप्पा (1966) |
किस मामले में निर्णय था, कि कर उद्देश्य से प्रविष्टि अलग माना जाएगा? |
सूर्य नाथ सिंह बनाम सीआईटी (1985) |
किस मामले के अनुसार नए भागीदार के आने पर पुरानी देनदारियां स्वतः स्थानांतरित नहीं होतीं? |
के.डी. कामथ बनाम सीआईटी (1971) |
राहुल को फर्म में भागीदार बनाया गया है, लेकिन वह पूर्व की देनदारियों से अनभिज्ञ था — क्या वह उन देनदारियों के लिए उत्तरदायी होगा? |
नहीं |
भागीदारी समझौते में उल्लेख है कि भागीदार के पुत्र को 18 वर्ष की आयु में स्वतः भागीदारी में लिया जाएगा — क्या यह वैध है? |
हाँ |
क्या नया भागीदार पुराने कर विवादों के लिए जिम्मेदार होता है? |
नहीं |
नए भागीदार को फर्म के लिए हस्ताक्षर करने का अधिकार कब प्राप्त होता है? |
भागीदारों की अनुमति के वाद |
क्या मौजूदा भागीदार संविदामें यह निर्धारित कर सकते हैं कि भविष्य में कोई विशेष व्यक्ति भागीदार बनेगा? |
हाँ |
प्रविष्टि के समय नया भागीदार क्या कर सकता है? |
केवल नया लाभ और दायित्व ग्रहण करता है |
भागीदार का निवृत्त होना (Retirement of a partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 32 |
कोई भागीदार फर्म से कैसे निवृत्त हो सकता है? |
अन्य सब भागीदारों की सम्मति से |
किस प्रकार की भागीदारी में भागीदार केवल नोटिस देकर निवृत्त हो सकता है? |
जहां भागीदारी इच्छाधीन है |
सभी भागीदारों की सहमति से किसी भागीदार का निवृत्त होना — |
मान्य और वैध है |
निवृत्त होने के वाद पूर्व भागीदार की देनदारी समाप्त होती है — |
अन्य भागीदारों के लिखित संविदासे |
निवृत्त होने के वाद अगर भागीदारी जारी रहती है, तो क्या पूर्व भागीदार का नाम हटाना आवश्यक है? |
हाँ, सूचना देनी होगी |
किस मामले में यह निर्णय हुआ, सूचना प्रकाशित करना आवश्यक है? |
केशवलाल लल्लूभाई पटेल बनाम लालभाई त्रिकुमलाल मिल्स लिमिटेड (1958) |
किस मामले के अनुसार भागीदार जब तक सूचना नहीं देता, वह जिम्मेदार रहता है? |
बैंक ऑफ इंडिया बनाम आधिकारिक परिसमापक (1955) |
किस मामले के अनुसार यदि निवृत्ति नोटिस नहीं दी गई तो देनदारी जारी रहती है? |
चिमनराम बनाम जयंतीलाल (1982) |
निवृत्त भागीदार को भविष्य में कौन से अधिकार नहीं रहते? |
भागीदारी प्रबंधन |
क्या निवृत्त भागीदार फर्म के नाम का उपयोग कर सकता है? |
नहीं |
भागीदारी का निष्कासन (Expulsion of a partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 33 |
किसी भागीदार का निष्कासन तभी वैध माना जाएगा जब वह हो — |
संविदाके अनुसार और सद्भावना में |
किस मामले के अनुसार अगर निष्कासन अन्य भागीदारों के फायदे के लिए हो, तो अवैध है? |
पोपटलाल बनाम खंडूभाई (गुजरात HC) |
फर्म ने एक भागीदार को बिना कारण निष्कासित किया, संविदामें निष्कासन का अधिकार था। क्या यह वैध होगा? |
नहीं, क्योंकि “नेक नीयत" नहीं है |
एक निष्कासित भागीदार को कौन-सा अधिकार नहीं होता? |
फर्म के नाम का उपयोग |
अगर निष्कासन के वाद भी निष्कासित भागीदार का नाम फर्म के साथ जुड़ा रहा, तो — |
निष्कासित भागीदार अभी भी उत्तरदायी हो सकता है |
फर्म का एक भागीदार बार-बार धोखाधड़ी में लिप्त पाया गया, लेकिन निष्कासन का संविदामें कोई प्रावधान नहीं है — उचित उपाय क्या है? |
संविदा में संशोधन या न्यायालय जाना |
एक निष्कासित भागीदार ने अपनी निष्कासन प्रक्रिया को न्यायालय में चुनौती दी अदालत सबसे पहले किस बात की समीक्षा करेगी? |
क्या निष्कासन का अधिकार संविदामें था |
भागीदार का दिवाला (Insolvency of a partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 34 |
जब कोई भागीदार दिवालिया घोषित होता है, तब वह फर्म से |
स्वतः निवृत्त माना जाता है |
दिवालिया भागीदार के अधिकार क्या होते हैं? |
वह फर्म की प्रबंधन में भाग नहीं ले सकता |
दिवालिया भागीदार के हिस्से का नियंत्रण किसके पास जाता है? |
दिवालिया प्रशासक |
फर्म की जारी देनदारियों के लिए दिवालिया भागीदार उत्तरदायी होता है — |
दिवालिया घोषित होने तक की अवधि के लिए |
यदि कोई भागीदार दिवालिया घोषित होता है, तो क्या फर्म स्वतः समाप्त हो जाती है? |
नहीं |
किस मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दिवालिया होते ही भागीदारी स्वतः समाप्त नहीं होती? |
सीआईटी बनाम शिवकाशी मैच एक्सपोर्टिंग फर्म (1964) |
किस मामले के अनुसार दिवालिया भागीदार लाभ में भागीदार नहीं हो सकता? |
नारायण चेट्टी बनाम सीआईटी (1959) |
फर्म के लाभ का वितरण कैसे होगा जब एक भागीदार दिवालिया हो जाता है? |
उसका हिस्सा दिवालिया प्रशासक को जाएगा |
मृत भागीदार की सम्पदा का दायित्व (Liability of estate of deceased partner) किस धारा से सम्बंधित है? |
धारा 35 |
मृत भागीदार की सम्पत्ति उत्तरदायी होगी — |
केवल मृत्यु से पहले तक की देनदारियों के लिए |
यदि मृत भागीदार के उत्तराधिकारी फर्म में शामिल नहीं होते, तो — |
मृतक की सम्पदा उत्तरदायी नहीं होगी |
किस मामले के अनुसार, मृत भागीदार की सम्पत्ति उत्तरदायी मृत्यु के वाद की गतिविधियों के लिए नहीं होती? |
मार्शल बनाम क्रुटवेल (1875) |
किस मामले में न्यायालय ने कहा, यदि उत्तराधिकारी सम्मिलित न हों, सम्पत्ति सुरक्षित रहती है? |
व्हिटमोर बनाम मेसन (1861) |
मृत भागीदार की सम्पत्ति कब तक देनदार रहती है? |
मृत्यु के दिन तक की फर्म की देनदारियों के लिए |
यदि मृतक भागीदार की सम्पत्ति को देनदार माना गया, तो यह किस आधार पर हो सकता है? |
भागीदारी संविदामें सहमति से |
क्या मृत भागीदार के कानूनी उत्तराधिकारी उत्तरदायित्व स्वीकार कर सकते हैं? |
हाँ, यदि वे फर्म में शामिल हो जाएं |
भागीदार की मृत्यु के वाद उसका नाम फर्म में बने रहने से — |
कोई प्रभाव नहीं पड़ता |
धारा 36 किससे संबंधित है? |
बाहर जाने बाले भागीदार को प्रतियोगी कारवार चलाने का अधिकार, व्यापार अवरोधी करार (Rights of outgoing partner to carry on competing business. Agreements in restraint of trade) |
निवृत्त भागीदार कब प्रतियोगी व्यापार कर सकता है? |
जब तक कि उसने इसके विरुद्ध कोई संविदान किया हो |
यदि कोई संविदा नहीं है, तो क्या निवृत्त भागीदार अपने नाम से समान व्यापार कर सकता है? |
हाँ |
किस मामले के अनुसार नॉन-कॉम्पीट क्लॉज़ उचित व्यापार प्रतिबंध है? |
मेसर्स गुजरात बॉटलिंग कंपनी लिमिटेड बनाम कोका कोला कंपनी (1995) |
किस मामले के अनुसार अगर उसने प्रतियोगिता-विरोधी संविदापर हस्ताक्षर किए हैं, तो वह बाध्य है? |
गोपाल बनाम भारत (सभी एच.सी.) |
यदि कोई निवृत्त भागीदार फर्म के ग्राहक को गलत जानकारी देकर आकर्षित करता है, तो — |
यह धोखाधड़ी मानी जाएगी |
क्या फर्म छोड़ने के वाद किसी को “पूर्व भागीदार” कहना गलत है? |
नहीं, अगर वह सच में पूर्व भागीदार है |
निवृत्त भागीदार को क्या नहीं करना चाहिए? |
पुराने ग्राहकों को बहकाना |
फर्म को धोखा देकर यदि बाहर जाने वाला भागीदार फर्म का नाम प्रयोग करे, तो — |
यह बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन हो सकता है |
प्रतिस्पर्धा पर रोक लगाने वाला संविदा तब मान्य होता है, जब — |
वह उचित सीमा और समय तक सीमित हो |
यदि कोई व्यक्ति फर्म छोड़कर प्रतिस्पर्धी फर्म में शामिल हो जाता है — और कोई रोक नहीं थी — तो क्या यह वैध है? |
हाँ |
एक नॉन-कॉम्पीट क्लॉज (प्रतिस्पर्धा निषेध अनुबंध) को भारत में मान्य माना जाता है यदि — |
वह व्यापार की स्वतंत्रता में बाधा न हो |
धारा 37 का संबंध है — |
बाहर जाने वाले भागीदार के पश्चातवर्ती लाभों में अंश पाने का अधिकार (Right of outgoing partner in certain cases to share subsequent profits) |
यदि बाहर जाने वाले भागीदार को उसका हिस्सा नहीं दिया गया है और फर्म जारी रहती है, तो वह किसका हकदार है? |
लाभांश या 6% वार्षिक ब्याज |
धारा 37 के अंतर्गत, लाभ का कौन-सा विकल्प बाहर जाने वाले भागीदार को मिलता है? |
लाभांश या 6% ब्याज में से कोई एक |
किस मामले के अनुसार लाभांश का हक तभी बनता है जब पूंजी वापसी न हो? |
राम नारायण बनाम काशीनाथ (बीओएम एचसी) |
यदि बाहर गया भागीदार किसी लाभ में हिस्सेदारी चाहता है, तो वह किसे साबित करना होगा? |
कि उसकी पूंजी अभी वापस नहीं की गई |
क्या धारा 37 स्वतः लागू होता है? |
हाँ, अगर पूंजी चुकता न हो |
धारा 37 के तहत 'पश्चातवर्ती लाभ' का तात्पर्य है — |
फर्म द्वारा अर्जित भविष्य का मुनाफा |
अगर कोई संविदा अलग प्रावधान करता है, तो क्या धारा 37 लागू होगा? |
नहीं, संविदाप्राथमिक होगा |
बाहर गया भागीदार लाभांश की मांग कब नहीं कर सकता? |
जब पूंजी राशि तुरंत चुकाई गई हो, जब फर्म बंद हो चुकी हो, जब उसने लिखित में मना किया हो |
धारा 38 का मुख्य विषय क्या है? |
चलत प्रत्याभूति का फर्म में तब्दीली होने से प्रतिसंहरण (Revocation of continuing guarantee by change in firm) |
‘निरंतर गारंटी’ का तात्पर्य है — |
गारंटी जो समय के साथ लागू रहती है |
धारा 38 के अनुसार, फर्म की संरचना में बदलाव से क्या होता है? |
चलत प्रत्याभूति स्वतः समाप्त हो जाती है |
यदि चलत प्रत्याभूति के दौरान फर्म में नया भागीदार शामिल होता है, तो — |
गारंटी स्वतः समाप्त हो जाती है |
किस मामले में न्यायालय ने कहा, गारंटी स्वतः निरस्त हो जाती है संरचना परिवर्तन से? |
ऑफर्ड बनाम डेविस (1862) |
किस मामले में यह स्पष्ट किया गया कि चलत प्रत्याभूति संरचना परिवर्तन से समाप्त हो जाती है? |
एम.एस. अनिरुद्धन बनाम थॉम्स बैंक लिमिटेड (एआईआर 1963) |
यदि चलत प्रत्याभूति संविदामें यह लिखा गया है कि "यह गारंटी फर्म में कोई भी परिवर्तन होने पर भी जारी रहेगी", तो क्या होगा? |
गारंटी वैध रूप से जारी रहेगी |
चालत प्रत्याभूति को समाप्त करने के लिए - |
लिखित नोटिस देना, संरचना परिवर्तन के साथ स्वतः समाप्त होना |
निरंतर गारंटी के लागू रहने की अवधि किस पर निर्भर करती है? |
गारंटी संविदा की शर्तों पर |
क्या चलत प्रत्याभूति को रद्द करने के लिए व्यक्तिगत नोटिस आवश्यक है? |
हाँ |
क्या चलत प्रत्याभूति एलएलपी में भी लागू होती है? |
हाँ, यदि वह भागीदारी फर्म की तरह पंजीकृत हो |
धारा 38 किस प्रकार की प्रत्याभूति को समाप्त करने की बात करता है? |
चलत प्रत्याभूति |
क्या फर्म के नाम में परिवर्तन से भी चलत प्रत्याभूति रद्द हो सकती है? |
हाँ, यदि यह संरचना परिवर्तन को दर्शाता हो |
|
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अध्याय VI |
|
फर्म का विघटन (Dissolution Of a Firm) |
|
फर्म के विघटन का अर्थ क्या है? |
सभी भागीदारों के बीच भागीदारी का अंत |
"फर्म का विघटन" कहलाता है? |
भागीदारी की समाप्ति |
क्या किसी एक भागीदार के रिटायर होने से फर्म का विघटन होता है? |
नहीं, जब तक अन्य भागीदार व्यापार जारी रखें |
धारा 39 के अनुसार "फर्म का विघटन" कब होता है? |
जब भागीदारी का अंत हो जाए |
किस मामले में यह स्पष्ट किया गया कि, फर्म का विघटन भागीदारी से भिन्न है? |
एराच एफ.डी. मेहता बनाम मीनू एफ.डी. मेहता (1998) |
जब फर्म का विघटन होता है, तो क्या होता है? |
परिसंपत्तियाँ बेची जाती हैं और दायित्व चुकाए जाते हैं |
फर्म का विघटन और भागीदारी का विघटन में अंतर क्या है? |
फर्म का विघटन सम्पूर्ण समाप्ति है, भागीदारी का विघटन आंशिक |
क्या भागीदारों की आपसी सहमति से फर्म को विघटित किया जा सकता है? |
हाँ |
फर्म के विघटन की प्रक्रिया में - |
पहले ऋण चुकता किया जाता है फिर पूंजी लौटाई जाती है |
किस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, भागीदारों के बीच विश्वास का टूटना विघटन का कारण है? |
नारायणप्पा बनाम भास्कर कृष्णप्पा (1966) |
"स्वैच्छिक विघटन" का अर्थ है — |
भागीदारों की सहमति से विघटन |
क्या भागीदारों की संख्या एक हो जाए, तो फर्म जारी रह सकती है? |
6 महीने तक |
धारा 40 किस प्रकार के विघटन से संबंधित है? |
भागीदारों की सहमति से विघटन (Dissolution by agreement) |
“समझौते द्वारा विघटन” का अर्थ है — |
भागीदारों की आपसी सहमति से विघटन |
क्या भागीदार बिना कोर्ट के हस्तक्षेप के फर्म का विघटन कर सकते हैं? |
हाँ, संविदा या सहमति द्वारा |
कौन-सी धारा भागीदारों की सहमति से विघटन से संबंधित है? |
धारा 40 |
किस मामले में कहा गया, भागीदारों की सहमति से फर्म समाप्त की जा सकती है? |
सुन्दरलाल बनाम चंद्रिका प्रसाद |
“समझौता" शब्द का अर्थ है — |
लिखित या मौखिक करार |
करार द्वारा विघटन कब मान्य होता है? |
जब सभी भागीदार सहमत हों |
क्या भागीदारी संविदा में विघटन की शर्त पहले से निर्धारित की जा सकती है? |
हाँ |
अगर भागीदार एकमत न हों, तो क्या धारा 40 लागू होती है? |
नहीं |
करार द्वारा विघटन का प्रभाव क्या होता है? |
भागीदारी समाप्त होती है |
क्या धारा 40 के अंतर्गत फर्म का विघटन कानूनी प्रक्रिया है? |
हाँ, यदि सहमति से हो |
क्या मौखिक सहमति से फर्म को समाप्त किया जा सकता है? |
हाँ |
करार द्वारा विघटन के लिए भागीदारों की न्यूनतम संख्या क्या होनी चाहिए? |
2 |
क्या कोई भागीदार अकेले फर्म को “समझौता" से समाप्त कर सकता है? |
नहीं |
क्या भागीदारी विलेख में समझौते द्वारा विघटन का उल्लेख जरूरी है? |
हाँ |
किस मामले में मुख्य निष्कर्ष था, भागीदारों की स्पष्ट सहमति आवश्यक है? |
मोती लाल बनाम फर्म दौलत राम (1953) |
क्या "समझौते द्वारा विघटन" का लाभ यह है कि — |
समय और न्यायिक खर्च बचता है, कोर्ट की अनुमति नहीं चाहिए, भागीदार आपसी समझ से कार्य कर सकते हैं |
धारा 40 कब नहीं लागू होती है? |
जब कोर्ट से विघटन होता है |
फर्म के विघटन के वाद दायित्वों की पूर्ति कैसे होती है? |
पहले लेनदारों को भुगतान किया जाता है |
धारा 41 किस से संबंधित है? |
वैवश्यक विघटन (Compulsory dissolution) |
कौन-सी स्थिति “अनिवार्य विघटन” को उत्पन्न करती है? |
भागीदारी का उद्देश्य अवैध हो जाना |
यदि भागीदारों में से कोई एक दिवालिया हो जाए, तो — |
फर्म स्वतः विघटित नहीं होगी |
धारा 41 के अनुसार, फर्म का अनिवार्य विघटन कब होता है? |
जब फर्म का कार्य विधिविरुद्ध हो जाए |
यदि फर्म के सभी भागीदार किसी शत्रु देश के नागरिक बन जाएं, तो क्या होगा? |
फर्म स्वचालित रूप से विघटित हो जाएगी |
क्या “अनिवार्य विघटन” के लिए कोर्ट की अनुमति आवश्यक है? |
नहीं |
अगर भागीदारी का उद्देश्य “नकली नोट बनाना” हो, तो — |
फर्म अनिवार्य रूप से विघटित होगी |
क्या धारा 41 स्वचालित विघटन की बात करती है? |
हाँ |
अनिवार्य विघटन में क्या भागीदारों की सहमति आवश्यक होती है? |
नहीं |
यदि भागीदारी का उद्देश्य भारत के कानून के विरुद्ध हो जाए, तो क्या होगा? |
फर्म को समाप्त करना होगा |
कौन सा मामला अवैध उद्देश्य वाली भागीदारी का विघटन सिद्धांत से जुड़ा है? |
घेरूलाल पारख बनाम महादेवदास (AIR 1959 SC 781) |
अगर फर्म का उद्देश्य “मादक पदार्थों की तस्करी” हो तो— |
फर्म अनिवार्य रूप से विघटित होगी |
धारा 41 के तहत कौन सी घटनाएँ “फर्म का तत्काल विघटन” सुनिश्चित करती हैं? |
भागीदारों की नागरिकता बदलना (दुश्मन देश) |
क्या अनिवार्य विघटन से पूर्व नोटिस देना आवश्यक है? |
नहीं |
धारा 42 किस प्रकार के विघटन से संबंधित है? |
किन्हीं आकस्मिकताओं के घटित होने पर विघटन (Dissolution on the happening of certain contingencies) |
कौन-सी परिस्थिति धारा 42 के अंतर्गत आती है? |
भागीदार की मृत्यु |
यदि कोई भागीदार दिवालिया हो जाए तो — |
फर्म धारा 42 के अंतर्गत विघटित मानी जाएगी |
इच्छानुसार भागीदारी के मामले में भागीदारों की मृत्यु का क्या प्रभाव होता है? |
फर्म समाप्त हो जाती है |
यदि भागीदारी किसी विशेष उद्देश्य हेतु बनी थी, और उद्देश्य पूर्ण हो गया, क्या प्रभाव होता है? |
फर्म समाप्त मानी जाएगी |
यदि भागीदारी किसी निश्चित अवधि के लिए बनाई गई थी, और वह अवधि समाप्त हो गई — |
फर्म स्वतः विघटित हो जाती है |
धारा 42 के अंतर्गत कौन-सी स्थिति नहीं आती? |
भागीदार का पागल होना |
क्या भागीदारी का संविदाआकस्मिकताओं के प्रभाव को रोक सकता है? |
हाँ |
कौन सा केस मृत्यु से उत्पन्न विघटन परिस्थिति से जुड़ा है? |
राम नारायण बनाम सुब्बाराम अय्यर |
यदि फर्म का उद्देश्य “एक भवन का निर्माण” है और वह पूरा हो जाए — |
फर्म विघटित मानी जाएगी |
धारा 42 के अंतर्गत “फर्म के विघटन” की स्थिति में क्या आवश्यक है? |
कोई विशेष कार्यवाही नहीं — स्वतः प्रभाव |
क्या भागीदार की मृत्यु के वाद, उसका उत्तराधिकारी भागीदार बन सकता है? |
नहीं, जब तक नया संविदा न हो |
क्या भागीदारी संविदा में यह तय किया जा सकता है कि भागीदार की मृत्यु के वाद भी फर्म जारी रहेगी? |
हाँ |
फर्म “2 साल के निर्माण कार्य” हेतु बनी, कार्य 18 महीने में पूर्ण हो गया — |
फर्म उसी क्षण समाप्त मानी जाएगी |
धारा 43 किस से संबंधित है? |
इच्छाधीन भागीदारी का सूचना द्वारा विघटन (Dissolution by notice of partnership at will) |
यदि भागीदार "A" ने "B" को मौखिक सूचना देकर फर्म से हटने की इच्छा व्यक्त की, तो धारा 43 के अंतर्गत वह सूचना — |
अमान्य होगी क्योंकि लिखित नहीं है |
इच्छानुसार भागीदारी को समाप्त करने के लिए भागीदार द्वारा दी गई सूचना कब प्रभावी होती है? |
सूचना प्राप्त होने की तिथि से |
क्या धारा 43 का प्रयोग पंजीकृत एवं अपंजीकृत दोनों प्रकार की भागीदारी में किया जा सकता है? |
पंजीकृत एवं अपंजीकृत दोनों में |
यदि भागीदारी "निर्धारित कार्यकाल" के लिए हो, तो क्या धारा 43 लागू होती है? |
नहीं |
यदि भागीदारों ने लिखित समझौते में लिखा है कि भागीदारी मृत्युपर्यंत चलेगी, तो क्या इसे इच्छानुसार भागीदारी माना जाएगा? |
नहीं |
किस मामले में, मौखिक सूचना को अमान्य ठहराया गया? |
जगन्नाथ बनाम रामचन्द्र (1951) |
धारा 43 के अनुसार यदि कोई भागीदार बिना सूचना दिए फर्म छोड़ देता है, तो — |
विघटन नहीं माना जाएगा |
अगर एक भागीदार ने आज सूचना दी और उसमें अगले महीने की तिथि लिखी, तो विघटन कब से माना जाएगा? |
अगले महीने से |
क्या धारा 43 के तहत दी गई सूचना वापस ली जा सकती है? |
हाँ, यदि अन्य भागीदार सहमत हों |
क्या एक भागीदार एकतरफा तरीके से धारा 43 के तहत फर्म समाप्त कर सकता है? |
हाँ |
सूचना द्वारा विघटन के वाद भागीदारों के बीच चल रहा मुकदमा — |
फर्म के समाप्त होने के वाद भी जारी रह सकता है |
यदि एक भागीदार कोर्ट में दावा करता है कि उसने सूचना दी थी लेकिन कोई सबूत नहीं है, तो — |
सूचना अमान्य मानी जाएगी |
यदि भागीदार ने जानबूझकर सूचना छुपाई और मीडिया में दी, तो क्या धारा 43 लागू होगी? |
नहीं, क्योंकि अन्य भागीदारों को सूचना नहीं मिली |
क्या धारा 43 की सूचना में कारण बताना आवश्यक है? |
नहीं |
क्या धारा 43 से विघटन के वाद भागीदार को लाभांश मिलता है? |
हाँ, लाभांश बंटवारा लागू रहेगा |
धारा 44 किससे संबंधित है? |
न्यायालय द्वारा विघटन (Dissolution by the Court) |
कौन-सी परिस्थिति धारा 44 के अंतर्गत नहीं आती? |
भागीदार का रिटायर होना |
किस धारा के तहत न्यायालय भागीदारी को समाप्त कर सकता है? |
धारा 44 |
किस केस का निष्कर्ष था, मानसिक अयोग्यता न्यायालय द्वारा विघटन का आधार है? |
कारमाइकल बनाम इवांस (1904) |
यदि कोई भागीदार निरंतर संविदाका उल्लंघन करता है, तो क्या न्यायालय फर्म को समाप्त कर सकता है? |
हाँ |
धारा 44 के अंतर्गत "न्यायसंगत एवं समतापूर्ण" आधार पर न्यायालय कब विघटन कर सकता है? |
भागीदारी उद्देश्य पूरा हो गया हो, भागीदारों के बीच अविश्वास हो, व्यापार हानिकारक हो गया हो |
कौन सा केस, न्यायोचित आधार पर विघटन सिद्धांत को स्पष्ट करता है? |
खान एंड कंपनी बनाम लतीफ एंड संस |
यदि भागीदार लगातार नुकसान में व्यापार कर रहे हैं और भविष्य में लाभ की संभावना नहीं है, तो — |
न्यायालय विघटन का आदेश दे सकता है |
धारा 44 के किस उपखंड के अंतर्गत "दुर्व्यवहार" (Misconduct) आता है? |
धारा 44 (ग) |
क्या न्यायालय भागीदारों के बीच व्यक्तिगत शत्रुता को विघटन का आधार मान सकता है? |
हाँ, यदि कार्य में बाधा आ रही हो |
"न्याय और सम्यकता" (Just and Equitable) आधार किस केस में महत्वपूर्ण था? |
मॉस बनाम एल्फिक |
यदि भागीदार व्यापार के लिए आवश्यक ध्यान नहीं दे रहा है, तो क्या ये विघटन का आधार है? |
हाँ |
धारा 44 के अंतर्गत भागीदार के दिवालिया होने की स्थिति — |
न्यायालय के निर्णय पर निर्भर |
क्या फर्म में बार-बार झगड़े न्यायालय द्वारा विघटन का कारण हो सकते हैं? |
हाँ |
यदि भागीदार मानसिक रूप से अस्वस्थ है पर व्यापार प्रभावित नहीं हो रहा, तो क्या धारा 44 लागू होगी? |
न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति पर |
क्या फर्म का उद्देश्य अवैध हो जाए तो धारा 44 लागू होती है? |
हाँ |
यदि एक भागीदार अन्य भागीदारों से छुपाकर व्यक्तिगत लाभ कमा रहा है — |
न्यायालय विघटन कर सकता है |
जब फर्म का विघटन हो जाता है, तो भागीदार कब तक उत्तरदायी रहते हैं? |
जब तक सार्वजनिक सूचना न दी जाए |
धारा 45 किससे संबंधित है? |
विघटन के पश्चात् किए गए भागीदारों के कार्यों के लिए दायित्व (Liability for acts of partners done after dissolution) |
धारा 45 के अनुसार, फर्म के विघटन के पश्चात भागीदार किसके प्रति दायित्व में रहते हैं? |
तीसरे पक्ष (third party) के प्रति |
यदि भागीदारों ने विघटन की सूचना समाचार पत्र में नहीं दी, तो क्या होगा? |
तीसरे पक्ष के लिए उत्तरदायी रहेंगे |
किस मामले में फर्म का उत्तरदायित्व विघटन के बाद भी रह सकता है, सिद्धांत निकाला गया? |
स्कार्फ़ बनाम जार्डाइन (1882) |
क्या एक भागीदार की मृत्यु के बाद भी धारा 45 लागू होती है? |
हाँ, जब तक सूचना नहीं दी जाती |
क्या धारा 45 केवल पंजीकृत फर्म पर लागू होती है? |
नहीं |
धारा 45 का उद्देश्य क्या है? |
तीसरे पक्ष की रक्षा करना |
यदि एक भागीदार ने विघटन के वाद तीसरे पक्ष से लेन-देन किया, तो — |
सभी भागीदार उत्तरदायी होंगे (जब तक सूचना न दी जाए) |
सार्वजनिक सूचना के लिए कौन-कौन से माध्यम उपयुक्त माने जाते हैं? |
राजपत्र और स्थानीय समाचार पत्र |
यदि कोई भागीदार मृत हो गया और विघटन की सूचना नहीं दी गई, तो उसके उत्तराधिकारी — |
उत्तरदायी नहीं होंगे (धारा 45 की व्याख्या के अनुसार) |
धारा 45 के तहत यदि सूचना दे दी गई, तो — |
उत्तरदायित्व समाप्त |
क्या एक भागीदार अकेले धारा 45 के अंतर्गत सूचना दे सकता है? |
हाँ |
यदि भागीदारों में से कोई व्यक्ति जानबूझकर सूचना न दे, तो क्या सभी उत्तरदायी माने जाएंगे? |
हाँ |
धारा 45 में "दायित्व" (Liability) का क्या अर्थ है? |
तीसरे पक्ष को हानि से बचाना |
क्या धारा 45 स्वचालित रूप से लागू होती है? |
नहीं, सूचना आवश्यक है |
क्या धारा 45 के अंतर्गत फर्म की समाप्ति की सूचना देना एक कानूनी दायित्व है? |
हाँ |
फर्म के विघटन के बाद यदि लेन-देन में फर्म का नाम प्रयुक्त होता है, तो — |
भागीदार दायित्व में रहेंगे |
धारा 46 किससे संबंधित है? |
विघटन के पश्चात् कारबार का परिसमापन कराने का भागीदारों का अधिकार (Right of partners to have business wound up after dissolution) |
परिसमापन के दौरान भागीदारों की पूंजी की वापसी कब होती है? |
अंतिम चरण में, जब सभी देनदारियों का भुगतान हो चुका हो |
क्या भागीदार परिसमापन के वाद लाभ में हिस्सा माँग सकता है? |
हाँ, यदि लाभ शेष हो |
फर्म की परिसमापन प्रक्रिया का उद्देश्य क्या होता है? |
सभी देनदारियों को निपटाकर फर्म की संपत्ति का वितरण |
धारा 46 के अनुसार परिसमापन के वाद पूंजी और लाभ का वितरण कैसे होता है? |
पूंजी योगदान और भागीदारी के अंश के अनुसार |
यदि फर्म के परिसमापन के दौरान संपत्ति अपर्याप्त हो, तो क्या होगा? |
भागीदारों से पूंजी ली जाएगी |
क्या एक भागीदार परिसमापन में नकद में भुगतान की माँग कर सकता है? |
हाँ |
धारा 46 के अनुसार, परिसमापन प्रक्रिया में कौन-सी संपत्ति उपयोग की जाती है? |
फर्म की संपूर्ण संपत्ति |
फर्म की परिसमापन प्रक्रिया किसके अधिकार द्वारा संचालित होती है? |
प्रत्येक भागीदार का वैधानिक अधिकार |
परिसमापन के अंतर्गत लाभ का वितरण किस नियम से होता है? |
भागीदारी के लाभ अंश के अनुसार |
फर्म के विघटन के वाद भागीदार का प्राधिकरण किस उद्देश्य से जारी रहता है? |
केवल परिसमापन के उद्देश्यों के लिए |
धारा 47 किससे संबंधित है? |
परिसमापन के प्रयोजनों के लिए भागीदारों का सतत प्राधिकार (Continuing authority of partners for purposes of winding up) |
क्या भागीदार परिसमापन के दौरान फर्म की संपत्ति को बेच सकता है? |
हाँ, यदि उद्देश्य परिसमापन से जुड़ा हो |
धारा 47 के अंतर्गत प्राधिकरण कब तक लागू रहता है? |
जब तक परिसमापन पूर्ण न हो |
यदि भागीदार परिसमापन के दौरान नया व्यापार शुरू कर ले, तो वह वैध माना जाएगा? |
नहीं |
फर्म के परिसमापन के दौरान भागीदार को अधिकार प्राप्त है — |
बकाया ऋण वसूलने का |
धारा 47 के तहत भागीदार का कौन-सा कर्तव्य सबसे महत्वपूर्ण होता है? |
परिसमापन पूरा करना |
क्या धारा 47 के अंतर्गत तीसरे पक्ष से की गई वसूली वैध होती है? |
हाँ, यदि वह फर्म के हित में हो |
परिसमापन के दौरान भागीदार की ओर से किया गया कार्य किस सीमा तक मान्य है? |
जब तक वह केवल परिसमापन से संबंधित हो |
क्या भागीदार फर्म के विघटन के वाद किसी लेन-देन में हस्ताक्षर कर सकता है? |
हाँ, यदि वह लेन-देन परिसमापन प्रक्रिया का हिस्सा हो |
यदि भागीदार धारा 47 के तहत अधिकारों का दुरुपयोग करता है, तो समाधान क्या है? |
अन्य भागीदार या तीसरे पक्ष न्यायालय में अपील कर सकते हैं |
फर्म की परिसंपत्ति का सबसे पहले उपयोग किसके भुगतान के लिए किया जाएगा? |
बाहरी ऋणदाताओं के भुगतान के लिए |
धारा 48 किससे संबंधित है? |
भागीदारों के बीच लेखा परिनिर्धारण का ढंग (Mode of settlement of accounts between partners) |
धारा 48 के अंतर्गत भागीदारों की पूंजी का भुगतान कब होता है? |
ऋण के वाद |
यदि परिसमापन के वाद संपत्ति शेष बचती है, तो उसका वितरण कैसे होता है? |
लाभ हिस्सेदारी के अनुसार |
क्या धारा 48 के अनुसार भागीदारों को दी गई संपत्ति में प्राथमिकता मिलती है? |
नहीं |
यदि कोई भागीदार दिवालिया हो जाए, तो पूंजी की भरपाई कौन करेगा? |
अन्य भागीदार |
क्या भागीदार द्वारा दिए गए ऋण को पूंजी माना जाता है? |
नहीं |
धारा 48 का उपयोग किस स्थिति में किया जाता है? |
फर्म के विघटन के समय लेखांकन में |
किस केस में, लेख परिनिर्धारण में निष्पक्षता पर बल दिया गया? |
बोस बनाम मणीन्द्र नाथ (1961) |
क्या धारा 48 भागीदारों की व्यक्तिगत देनदारियों को भी शामिल करती है? |
नहीं |
क्या फर्म की आस्तियां जिनके अन्तर्गत पूंजी की कमी को पूरा करने के लिए भागीदारों द्वारा अभिदत्त की गई रकम भी आती है? |
हाँ |
धारा 48 के तहत देनदारियों के निपटान का अंतिम चरण कौन सा होता है? |
भागीदारों के बीच लाभ का वितरण |
यदि भागीदार के पास फर्म और व्यक्तिगत दोनों ऋण हैं, तो पहले कौन-सा ऋण चुकाया जाएगा? |
फर्म का ऋण |
धारा 49 किससे संबंधित है? |
फर्म के ऋणों और पृथक् ऋणों का संदाय (Payment of firm debts and of separate debts) |
धारा 49 के अनुसार भागीदार की व्यक्तिगत संपत्ति किस ऋण के लिए पहले प्रयुक्त की जाती है? |
उसके निजी ऋण के लिए |
किस केस में, फर्म और व्यक्तिगत ऋणों की प्राथमिकता को स्पष्ट किया गया? |
एक्स पार्टे क्राउडर (1879) |
क्या फर्म की संपत्ति से भागीदार के व्यक्तिगत कर्ज का भुगतान किया जा सकता है? |
नहीं |
फर्म की संपत्ति पहले किसके भुगतान के लिए उपयोग की जाती है? |
फर्म के देनदार |
क्या फर्म के देनदार भागीदार की निजी संपत्ति पर दावा कर सकते हैं? |
हाँ, यदि फर्म की संपत्ति पर्याप्त न हो |
फर्म और भागीदार दोनों दिवालिया हो जाएं, तो पहले किसका ऋण चुकाया जाएगा? |
फर्म का |
धारा 49 के अंतर्गत “फर्म की संपत्ति” में क्या शामिल है? |
फर्म द्वारा अर्जित सभी संपत्तियाँ |
क्या भागीदार की व्यक्तिगत संपत्ति पर अन्य भागीदारों का अधिकार होता है? |
नहीं |
यदि कोई भागीदार फर्म के ऋणों को चुकाने में असमर्थ है, तो कौन जिम्मेदार होता है? |
अन्य भागीदार संयुक्त रूप से |
फर्म ऋणों के भुगतान की वैधता का संबंध किस केस से था? |
सेठ लूनकरन सेठिया बनाम इवान ई. जॉन (1977) |
क्या धारा 49 पार्टनरशिप डीड की शर्तों को ओवरराइड करती है? |
हाँ, अगर डीड मौन है |
फर्म के विघटन के वाद उपार्जित लाभ यदि फर्म की संपत्ति से संबंधित है तो वह लाभ किसका होता है? |
सभी पूर्व भागीदारों का |
धारा 50 का उद्देश्य क्या है? |
व्यक्तिगत लाभों को फर्म में जोड़ना |
भागीदार द्वारा अर्जित व्यक्तिगत लाभ का फर्म में समावेश किस केस पर आधारित है? |
बेंटले बनाम क्रेवेन (1853) |
धारा 50 किस प्रकार के लाभ पर लागू होती है? |
फर्म के व्यवसाय से जुड़े व्यक्तिगत लाभ पर |
क्या पूर्व भागीदार को फर्म की संपत्ति से लाभ उठाने का अधिकार है? |
नहीं |
विघटन के वाद लाभ यदि फर्म के "सद्भावना" से संबंधित हो, तो क्या होगा? |
उसे फर्म के हित में गिना जाएगा |
क्या भागीदार विघटन के पश्चात नया व्यापार फर्म के पुराने संसाधनों से कर सकता है? |
नहीं, वह लाभ फर्म का माना जाएगा |
धारा 50 लागू होता है जब — |
फर्म का विघटन हो चुका हो |
यदि कोई भागीदार फर्म की जानकारी से लाभ कमाता है, तो — |
वह लाभ फर्म को लौटाना होगा |
अगर कोई पूर्व भागीदार फर्म के ग्राहकों से व्यापार करता है, तो — |
उसे लाभ का हिस्सा फर्म में देना होगा |
धारा 50 के तहत फर्म के "नाम" के प्रयोग पर किसका अधिकार होता है? |
फर्म के सभी भागीदारों का |
यदि भागीदारों के बीच कोई संविदाहो कि कोई पूर्व भागीदार लाभ रख सकता है, तो क्या होगा? |
पूर्व भागीदार लाभ रख सकता है |
धारा 51 किससे संबंधित है? |
समयपूर्व विघटन में प्रीमियम की वापसी (Return of premium on premature dissolution) |
धारा 51 के अंतर्गत प्रीमियम की वापसी कब संभव नहीं होती? |
जब भागीदारी किसी भागीदार की गलती के कारण टूटी हो |
"भागीदार द्वारा प्रीमियम का भुगतान केवल तभी वापसी योग्य है जब" कथन को किस परिस्थिति में लागू नहीं किया जा सकता? |
भागीदारी किसी साथी की गलती से टूटी हो |
यदि भागीदारी समझौते में प्रीमियम वापसी का कोई प्रावधान न हो, तो धारा 51 की क्या भूमिका होती है? |
धारा 51 के प्रावधान स्वचालित रूप से लागू होते हैं |
किस केस में अनुचित विघटन पर प्रीमियम वापसी से इनकार सिद्धांत को स्थापित किया? |
एटवुड बनाम मौड |
कौन सी स्थिति धारा 51 के तहत पूर्ण प्रीमियम वापसी का आधार बन सकती है? |
न्यायालय द्वारा गलत जानकारी के कारण विघटन |
धारा 51 का उद्देश्य क्या है? |
अनुचित विघटन की स्थिति में न्याय सुनिश्चित करना |
यदि भागीदारी में प्रवेश के समय कोई प्रीमियम नहीं दिया गया था, तो धारा 51 की स्थिति क्या होगी? |
धारा 51 लागू नहीं होगी |
यदि भागीदार A को भागीदारी में शामिल करने के लिए B ने मुनाफे के आंकड़ों को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, और A ने भागीदारी से संविदा समाप्त कर दिया, तो A को धारा 52 के तहत कौन-से अधिकार प्राप्त होंगे? |
भागीदारी की पूंजी और लाभ में से उचित हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार |
धारा 52 भागीदारी के वित्तीय दस्तावेजों में कपट से संबंधित है? |
मुरलीधर बनाम गोपाल |
कौन-सी परिस्थिति धारा 52 के तहत “भागीदारी समझौते का निरसन” को उचित बनाती है? |
भागीदार द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी छिपाना |
धारा 52 किससे संबंधित है? |
अधिकार, जहां कि भागीदारी की संविदा कपट या दुर्व्यपदेशन के कारण विखंडित कर दी गई है (Rights where partnership contract is rescinded for fraud or misrepresentation) |
धारा 52 के अंतर्गत कौन-सी राहत न्यायालय द्वारा प्रदान की जा सकती है? |
कपट से ठगे गए भागीदार को लाभांश और पूंजी वापसी |
कौन सा मामला भागीदार द्वारा धोखाधड़ी के तहत बनाई गई साझेदारी पर केंद्रित है? |
व्हिंकप बनाम ह्यूजेस |
यदि भागीदारी संविदादुर्व्यपदेशन (misrepresentation) पर आधारित हो और कोर्ट उसे रद्द करे, तो पीड़ित भागीदार किससे नुकसान की भरपाई मांग सकता है? |
कपटी भागीदार से |
धारा 52 के तहत भागीदार को लाभ का दावा कब नहीं मिलेगा? |
यदि उसने भी कपट में भाग लिया हो |
कपट या धोखाधड़ी के आधार पर भागीदारी समाप्त करने के वाद, क्या पीड़ित भागीदार भविष्य में उसी भागीदारी में पुनः प्रवेश कर सकता है? |
हां, यदि सभी भागीदार सहमत हों |
धारा 53 किससे संबंधित है? |
फर्म नाम या फर्म की सम्पत्ति को उपयोग में लाने से अवरुद्ध करने का अधिकार (Right to restrain from use of firm name or firm property) |
धारा 53 का उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? |
भागीदारी विघटन के वाद निष्पक्ष व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना |
धारा 53 के तहत “फर्म का नाम इस्तेमाल करने से रोकना” का अधिकार कब लागू होता है? |
जब भागीदारी समाप्त हो चुकी हो |
यदि भागीदार A ने फर्म का नाम और लोगो उपयोग किया, जबकि भागीदारी पहले ही विघटित हो चुकी है, तो अन्य भागीदार क्या कर सकते हैं? |
धारा 53 के अंतर्गत कोर्ट से निषेधाज्ञा ले सकते हैं |
कौन-सी स्थिति में धारा 53 के अंतर्गत रोक लागू नहीं होगी? |
जब भागीदार ने फर्म की "सद्भावना" खरीदी हो |
कौन-सा केस धारा 53 के प्रभावी प्रवर्तन से संबंधित है? |
चनमुल्ल जैन बनाम फर्म गणपतराय |
यदि भागीदार A फर्म की संपत्ति (मशीनरी, ब्रांड, टूल्स) को अपने नए व्यवसाय में उपयोग कर रहा है, तो धारा 53 के अंतर्गत क्या समाधान है? |
कोर्ट से आदेश लेकर रोक लगाई जा सकती है |
धारा 53 का सीधा संबंध किस कानूनी सिद्धांत से है? |
विघटन के वाद गैर-प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत |
यदि भागीदारी संविदामें विशेष रूप से लिखा गया हो कि "फर्म का नाम किसी को नहीं दिया जाएगा", तो धारा 53 में उसका क्या प्रभाव होगा? |
कोर्ट इस संविदाको प्राथमिकता देगा |
धारा 53 का उल्लंघन होने पर अदालत कौन-सा अंतरिम राहत आदेश दे सकती है? |
रोक आदेश |
"सद्भावना" शब्द का प्रयोग धारा 53 में क्यों महत्वपूर्ण है? |
यह यह तय करता है कि कौन भागीदारी नाम का उपयोग कर सकता है |
भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 54 किस प्रकार के समझौते को वैध मानती है? |
भागीदारी विघटन के वाद व्यापार में प्रतिस्पर्धा से रोकने वाला समझौता |
धारा 54 किस अधिनियम के अपवाद के रूप में कार्य करता है? |
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 की धारा 27 |
धारा 54 का मुख्य उद्देश्य क्या है? |
भागीदारी के विघटन के वाद व्यवसाय में अनुशासन बनाए रखना |
धारा 54 के अनुसार, व्यापार में रोक लगाने वाला समझौता कब वैध होता है? |
जब वह भागीदारी के विघटन के वाद हो |
क्या धारा 54 के अंतर्गत प्रतिस्पर्धा पर प्रतिबंधित करार की अवधि और भौगोलिक सीमा का उल्लेख आवश्यक है? |
हाँ, अन्यथा करार शून्य हो जाएगा |
"सद्भावना" की बिक्री के समय व्यापार में रोक (non-compete clause) डालना किसके अंतर्गत आता है? |
धारा 55 (3) |
धारा 54 के अंतर्गत समझौते की वैधता पर कौन-से तत्व प्रभाव डालते हैं? |
स्थान और अवधि |
क्या धारा 54 के तहत प्रतिबंध अनिश्चित काल तक लगाया जा सकता है? |
नहीं, अनिश्चित प्रतिबंध शून्य होगा |
धारा 54 के तहत यदि कोई प्रतिबंध अनुचित माना गया, तो न्यायालय क्या कर सकता है? |
उसे आंशिक रूप से लागू कर सकता है |
गुडविल की बिक्री से संबंधित प्रावधान भारतीय भागीदारी अधिनियम की किस धारा में दिया गया है? |
धारा 55 |
गुडविल को कैसे परिभाषित किया गया है? |
ग्राहक विश्वास और प्रतिष्ठा जो फर्म के नाम से जुड़ी होती है |
गुडविल की बिक्री के पश्चात, क्या कोई भागीदार फर्म के पुराने ग्राहकों को अपनी नई फर्म के लिए संपर्क कर सकता है? |
नहीं, यदि ऐसा रोकने का समझौता किया गया हो |
गुडविल की बिक्री के वाद, फर्म का नाम किसका हो सकता है? |
कोई भी खरीददार उपयोग कर सकता है |
गुडविल की बिक्री के पश्चात यदि समझौते में कोई रोक नहीं है, तो क्या कोई पूर्व भागीदार समान व्यापार शुरू कर सकता है? |
हाँ, और पुराने ग्राहकों से संपर्क भी कर सकता है |
गुडविल की बिक्री किस रूप में हो सकती है? |
भागीदारी विघटन के पश्चात एक समझौते के तहत |
यदि गुडविल की बिक्री में फर्म नाम का उपयोग करने का विशेषाधिकार निहित है, तो क्या खरीददार उस नाम का उपयोग कर सकता है? |
हाँ, यदि नाम विशेष रूप से संविदामें शामिल हो |
धारा 55 का उद्देश्य क्या है? |
गुडविल को एक वित्तीय संपत्ति के रूप में मान्यता देना |
गुडविल की बिक्री के वाद गोपनीय जानकारी (client list, pricing, etc.) का उपयोग करने की अनुमति किसे होती है? |
केवल गुडविल का खरीदार |
क्या गुडविल को बेचना अनिवार्य है जब भागीदारी विघटित हो? |
नहीं, यह भागीदारों की इच्छा पर निर्भर करता है |
गुडविल की बिक्री का मूल्य निर्धारण किस आधार पर किया जाता है? |
ग्राहकों की संख्या और ब्रांड वैल्यू |
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अध्याय- VII |
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फर्मों का रजिस्ट्रीकरण (Registration Of Firms) |
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धारा 56 किसे यह शक्ति देती है कि वह इस अध्याय की धाराओं को किसी वर्ग या क्षेत्र में लागू न करे? |
राज्य सरकार |
धारा 56 के अनुसार छूट किस प्रकार दी जा सकती है? |
राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना द्वारा |
धारा 56 के अंतर्गत छूट दी जा सकती है: |
किसी क्षेत्र विशेष की सभी साझेदारियों को |
धारा 56 किस अध्याय पर लागू होती है? |
अध्याय IV (Registration of Firms) |
धारा 57 किससे संबंधित है? |
रजिस्ट्रारों की नियुक्ति (Appointment of Registrars) |
धारा 57 के अनुसार, भागीदारी फर्मों के पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार की नियुक्ति कौन करता है? |
राज्य सरकार |
क्या रजिस्ट्रार भागीदारी फर्म के नाम को अस्वीकार कर सकता है? |
हाँ, यदि नाम अनुचित या पहले से पंजीकृत हो |
रजिस्ट्रार के निर्णय के खिलाफ अपील कहाँ की जा सकती है? |
जिला न्यायालय |
क्या रजिस्ट्रार भागीदारी अधिनियम के तहत अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) शक्ति रखता है? |
हाँ, सीमित मामलों में |
रजिस्ट्रार के पास जमा होने वाले दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता को कौन सत्यापित करता है? |
स्वयं रजिस्ट्रार |
रजिस्ट्रार द्वारा फर्म का रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र जारी करने के वाद, क्या यह प्रमाण होता है? |
फर्म अस्तित्व में है |
रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किस रूप में दिया जाना चाहिए? |
लिखित प्रपत्र में, रजिस्ट्रार द्वारा निर्धारित फॉर्म में |
धारा 58 किससे संबंधित है |
रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन (Application for registration) |
धारा 58 के तहत आवेदन पत्र पर किसकी हस्ताक्षर और सत्यापन होना अनिवार्य है? |
कम से कम एक भागीदार द्वारा |
किस मामले में व्याख्या की गई, भागीदारी में व्यवसाय होना आवश्यक है? |
के.डी. कामथ एंड कंपनी बनाम सीआईटी (1971) |
यदि फर्म का नाम किसी सरकारी प्रतिबंधित नाम से मिलता-जुलता हो, तो रजिस्ट्रार क्या कर सकता है? |
रजिस्ट्रेशन को अस्वीकार कर सकता है |
धारा 58 के अनुसार, आवेदन में भागीदारों की प्रवेश तिथि क्यों जरूरी है? |
भागीदारी के वैध अस्तित्व को प्रमाणित करने हेतु |
फर्म का नाम कौन-से अधिनियम के नियमों का पालन करना चाहिए? |
नाम और प्रतीक अधिनियम, 1950 |
धारा 58 के अंतर्गत आवेदन पत्र में स्थान का उल्लेख क्यों जरूरी है? |
कर निर्धारण हेतु |
धारा 58 में रजिस्ट्रेशन का समय निर्धारण कब होता है? |
जब आवेदन स्वीकृत होता है |
फर्म का रजिस्ट्रीकरण किस आधार पर किया जाता है? |
आवेदन की प्राप्ति और उसमें उल्लिखित जानकारी की संतुष्टि पर |
रजिस्ट्रार किस प्रकार रजिस्ट्रीकरण की पुष्टि करता है? |
फर्म के नाम को फर्मों का रजिस्टर में दर्ज करके |
रजिस्ट्रेशन की प्रभावी तिथि कौन-सी मानी जाती है? |
जब रजिस्ट्रार फर्म का नाम रजिस्टर में दर्ज करता है |
क्या रजिस्ट्रार आवेदन को अस्वीकार कर सकता है यदि वह संतुष्ट न हो? |
हाँ, यदि आवेदन में गलतियाँ हों या जानकारी अधूरी हो |
धारा 59 के तहत रजिस्ट्रेशन किस प्रकार की कार्रवाई है? |
प्रशासनिक |
क्या रजिस्ट्रेशन एक अनिवार्य प्रक्रिया है? |
नहीं, फर्म बिना रजिस्ट्रेशन के भी कार्य कर सकती है |
रजिस्ट्रेशन न होने की स्थिति में कौन-सा अधिकार फर्म को नहीं मिलेगा? |
न्यायालय में वाद दायर करने का अधिकार |
धारा 60 किससे संबंधित है? |
फर्म नाम में और कारबार के मुख्य स्थान में हुए परिवर्तनों का अभिलेख (Recording of alterations in firm name and principal place of business) |
धारा 60 के अंतर्गत किस परिवर्तन की सूचना देना अनिवार्य है? |
फर्म का नाम और मुख्य कार्यालय का पता |
परिवर्तन की सूचना किस रूप में दी जानी चाहिए? |
लिखित सूचना, सत्यापित रूप में |
यदि परिवर्तन की सूचना दर्ज नहीं कराई गई, तो क्या परिणाम हो सकता है? |
फर्म न्यायालय में वाद दाखिल करने में अक्षम हो सकती है |
परिवर्तन की सूचना कितने समय में दर्ज करानी चाहिए? |
जैसे ही परिवर्तन हो |
क्या रजिस्ट्रार परिवर्तन को अस्वीकार कर सकता है? |
हाँ, यदि सूचना असत्य या अधूरी हो |
फर्म का नाम बदलने पर क्या रजिस्ट्रेशन फिर से करना होगा? |
नहीं, केवल परिवर्तन की सूचना देनी होती है |
धारा 61 किस स्थिति से संबंधित है? |
शाखाओं के खोलने और बंद करने से |
फर्म द्वारा नई शाखा खोलने पर उसे क्या करना अनिवार्य है? |
रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स को लिखित सूचना देना |
क्या फर्म द्वारा किसी शाखा को बंद करने की सूचना देना आवश्यक है? |
हाँ, धारा 61 के अनुसार |
सूचना किस रूप में दी जानी चाहिए? |
लिखित और सत्यापित फॉर्म में |
क्या यह धारा केवल रजिस्टर्ड फर्मों पर लागू होती है? |
हाँ, केवल रजिस्टर्ड फर्मों पर |
क्या शाखा बंद करने की सूचना न देने से फर्म की वैधता पर प्रभाव पड़ता है? |
नहीं, लेकिन यह रजिस्टर में असत्य जानकारी रखता है |
धारा 61 का उद्देश्य क्या है? |
सार्वजनिक रिकॉर्ड को अद्यतन बनाए रखना |
धारा 62 किन परिवर्तनों से संबंधित है? |
भागीदारों के नाम और उनके व्यक्तिगत पते में परिवर्तन (Noting of changes in names and addresses of partners) |
जब किसी भागीदार का नाम या पता बदलता है, तब फर्म को क्या करना अनिवार्य है? |
रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स को लिखित और सत्यापित सूचना देना |
नाम और पते में बदलाव की सूचना किसके द्वारा दी जा सकती है? |
फर्म का कोई भागीदार या उसका अधिकृत प्रतिनिधि |
यदि कोई फर्म सूचना नहीं देती कि एक भागीदार का पता बदल गया है, तो क्या प्रभाव हो सकता है? |
सरकारी रिकॉर्ड अद्यतन नहीं होगा और इससे कानूनी जटिलता उत्पन्न हो सकती है |
रजिस्ट्रार किस दस्तावेज़ में इन परिवर्तनों को दर्ज करता है? |
फर्मों का रजिस्टर |
किस केस में मुख्य निष्कर्ष था, नाम और पते के परिवर्तन की सूचना देने में विफलता से विधिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं? |
राम प्रकाश बनाम राज्य |
धारा 62 के अंतर्गत कौन-कौन सी जानकारी अपडेट की जाती है? |
भागीदारों के व्यक्तिगत नाम और उनके पते |
यदि कोई भागीदार अपना नाम कानूनी रूप से बदल ले, तो फर्म को क्या करना होता है? |
रजिस्ट्रार को सूचना देनी होती है |
क्या रजिस्ट्रार दी गई सूचना को जांच सकता है? |
हाँ, वह सत्यापन के लिए दस्तावेज़ मांग सकता है |
सूचना न देने का सबसे गंभीर प्रभाव क्या हो सकता है? |
रिकॉर्ड में गलत जानकारी, जिससे मुकदमों में कठिनाई |
धारा 63 किससे संबंधित है? |
फर्म में तब्दीलियों और उसके विघटन का अभिलेखन, अप्राप्तवय के प्रत्याहरण का अभिलेखन (Recording of changes in and dissolution of a firm Recording of withdrawal of a minor) |
फर्म के विघटन की सूचना किसे दी जाती है? |
रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स को |
भागीदार के त्याग (Retirement) की स्थिति में सूचना कौन दे सकता है? |
रिटायर्ड भागीदार, मौजूदा भागीदार, दोनों में से कोई |
किस मामले में कोर्ट ने कहा, रजिस्ट्रार को सूचित किए बिना बदलाव विधिक रूप से अप्रभावी होते हैं? |
लक्ष्मी फर्म बनाम फर्म रजिस्ट्रार |
फर्म के विघटन की सूचना देने के लिए कौन उत्तरदायी होता है? |
अंतिम बचे हुए भागीदार |
क्या मृत्यु के कारण भागीदार का नाम हटाना संभव है? |
हाँ, मृत्यु प्रमाणपत्र के साथ सूचना देकर |
क्या यह धारा केवल रजिस्टर्ड फर्म पर लागू होती है? |
हाँ, केवल रजिस्टर्ड फर्म पर |
धारा 63 के अंतर्गत सूचना किस रूप में होनी चाहिए? |
लिखित और सत्यापित रूप में |
किस मामले में कोर्ट ने कहा, यदि फर्म विघटित हो जाए और सूचना न दी जाए, तो कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं? |
कैलाश चंद बनाम फर्म रजिस्ट्रार |
क्या भागीदार के त्याग या मृत्यु के वाद फर्म का पंजीकरण स्वतः समाप्त हो जाता है? |
नहीं, जब तक रजिस्ट्रार को सूचना न दी जाए |
फर्म के विघटन की सूचना न देने पर क्या प्रभाव हो सकता है? |
भागीदारों को अनावश्यक दायित्व झेलने पड़ सकते हैं |
धारा 63 के अंतर्गत कौन-सी कार्रवाई रजिस्ट्रार द्वारा की जाती है? |
सूचना को फर्मों का रजिस्टर में नोट करना |
क्या सूचना देने के लिए कोई फॉर्म विशेष होता है? |
हाँ, राज्य सरकार द्वारा निर्धारित |
रजिस्ट्रार सूचना को कब अमान्य कर सकता है? |
यदि दस्तावेज असत्यापित हों या नियमों का उल्लंघन हो |
धारा 63 का उद्देश्य क्या है? |
फर्म में वास्तविक परिवर्तन का अभिलेखन करना |
धारा 64 किससे संबंधित है? |
भूलों का परिशोधन (Rectification of mistakes) |
यदि रजिस्ट्रार की प्रविष्टियों में अनजाने में किसी भागीदार का नाम ग़लत दर्ज हो जाए, तो किस धारा के अंतर्गत उसे सुधारा जा सकता है? |
धारा 64 |
क्या रजिस्ट्रार अपनी मर्जी से बिना किसी सूचना के फर्म के रिकॉर्ड में संशोधन कर सकता है? |
नहीं, सभी संबंधित पक्षों को नोटिस देकर ही |
यदि रजिस्ट्रार द्वारा किया गया संशोधन किसी भागीदार को नुकसान पहुँचाता है, तो वह क्या कर सकता है? |
उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर सकता है |
क्या त्रुटि सुधारने के लिए फॉर्म कोई निर्धारित फॉर्मेट में होता है? |
हाँ, राज्य सरकार द्वारा निर्धारित फॉर्म |
परिहार का कार्य किस उद्देश्य से किया जाता है? |
रजिस्टर ऑफ फर्म्स को अद्यतन और सत्य बनाए रखने के लिए |
क्या फर्म की त्रुटिपूर्ण प्रविष्टियों के लिए केवल रजिस्ट्रार जिम्मेदार है? |
नहीं, आवेदक द्वारा दी गई गलत जानकारी के लिए वह जिम्मेदार नहीं |
किस मामले में प्रमुख निष्कर्ष था, बिना पक्ष को सुने किया गया परिशोधन अवैध है? |
अग्रवाल एंड संस बनाम राज्य रजिस्ट्रार (2016) |
रजिस्ट्रार द्वारा किए गए परिशोधन को चुनौती देने के लिए क्या विकल्प उपलब्ध है? |
उच्च न्यायालय में संवैधानिक याचिक |
क्या एक बार की गई गलती को बार-बार संशोधित किया जा सकता है? |
हाँ, यदि आवश्यक हो और प्रमाण हो |
क्या धारा 64 केवल अस्थाई त्रुटियों के लिए लागू होती है? |
नहीं, स्थाई और अस्थाई दोनों के लिए |
रजिस्ट्रार के पास धोखाधड़ीपूर्ण जानकारी होने पर क्या अधिकार है? |
प्रविष्टि को सुधार कर उसे ‘धोखाधड़ी’ के रूप में चिह्नित कर सकता है |
धारा 65 किस रजिस्टर से संबंधित है? |
रजिस्टर ऑफ फर्म्स |
किस परिस्थिति में कोई व्यक्ति न्यायालय से रजिस्टर के संशोधन का आदेश प्राप्त कर सकता है? |
जब प्रविष्टि धोखाधड़ी या भूलवश गलत हो |
किस मामले में न्यायालय ने कहा, न्यायालय उचित साक्ष्य मिलने पर संशोधन का आदेश दे सकता है? |
सोहनलाल बनाम फर्म रजिस्ट्रार (1995) |
धारा 65 का मुख्य उद्देश्य क्या है? |
रजिस्टर ऑफ फर्म्स में दर्ज असत्य/ग़लत प्रविष्टियों को कोर्ट के माध्यम से ठीक कराना |
क्या रजिस्ट्रार न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कार्य कर सकता है? |
नहीं, वह न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है |
क्या कोई भागीदार व्यक्तिगत रूप से धारा 65 के अंतर्गत न्यायालय जा सकता है? |
हाँ, कोई भी संबंधित पक्ष कोर्ट में आवेदन कर सकता है |
न्यायालय किस आधार पर रजिस्टर में संशोधन का आदेश देता है? |
साक्ष्य, न्याय और तथ्यों के आधार पर |
धारा 65 किसके संरक्षण के लिए है? |
भागीदारों व संबंधित पक्षों के कानूनी अधिकारों की रक्षा हेतु (Amendment of Register by order of Court) |
कोर्ट द्वारा संशोधन आदेश के वाद, रजिस्ट्रार संशोधित प्रविष्टि को कहाँ दर्ज करता है? |
फर्मों का रजिस्टर में |
धारा 65 का उपयोग कब नहीं किया जा सकता? |
जब त्रुटि फर्म की सहमति से ठीक की जा सकती हो |
धारा 66 किससे संबंधित है? |
रजिस्टर और फाइल की गई दस्तावेजों का निरीक्षण (Inspection of Register and filed documents) |
धारा 66 के अनुसार रजिस्टर और फाइल किए गए दस्तावेजों का निरीक्षण किसके द्वारा किया जा सकता है? |
कोई भी भागीदार और अन्य संबंधित व्यक्ति |
किस केस में न्यायालय ने निर्णय दिया, रजिस्टर और दस्तावेज़ों का निरीक्षण किसी भी संबंधित व्यक्ति को किया जा सकता है? |
राजू ट्रेडर्स बनाम राकेश कुमार (2010) |
धारा 67 किससे संबंधित है? |
प्रतियों का दिया जाना (Grant of copies) |
रजिस्टर की प्रति प्राप्त करने की प्रक्रिया में, रजिस्ट्रार किस स्थिति में उस व्यक्ति से अतिरिक्त शुल्क ले सकता है? |
जब व्यक्ति विशेष प्रकार की प्रति चाहता हो |
क्या रजिस्टर की प्रति प्राप्त करने से पहले, किसी व्यक्ति को कोई लिखित प्रमाण प्रस्तुत करना जरूरी होता है? |
हां, उसे फर्म के साथ अपनी कानूनी पहचान का प्रमाण प्रस्तुत करना होता है |
धारा 67 के तहत, क्या रजिस्टर या दस्तावेज़ की प्रति देने के लिए रजिस्ट्रार को किसी न्यायिक आदेश की आवश्यकता होती है? |
नहीं, रजिस्ट्रार बिना आदेश के भी प्रति दे सकता है |
किस मामले में, अदालत ने निर्णय दिया था कि रजिस्टर की प्रति प्राप्त करने का अधिकार केवल फर्म के भागीदारों को नहीं होता, यह किसी भी कानूनी व्यक्ति को दिया जा सकता है? |
श्याम सुंदर बनाम रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स (2017) |
अगर रजिस्टर की प्रति प्राप्त करने का आवेदन किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है, तो रजिस्ट्रार को क्या जांचना होगा? |
व्यक्ति का कानूनी अधिकार या संबंध फर्म से |
क्या रजिस्टर की प्रति देने से पहले रजिस्ट्रार को दस्तावेज़ की वैधता की जांच करनी होती है? |
हां, यदि दस्तावेज़ की वैधता संदिग्ध हो तो रजिस्ट्रार को जांच करनी होती है |
रजिस्टर या दस्तावेज़ की प्रति प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र में क्या विवरण अनिवार्य रूप से होना चाहिए? |
आवेदक का नाम, पता और उसका कानूनी अधिकार |
धारा 68 किस से संबंधित है? |
साक्ष्य के नियम (Rules of evidence) |
धारा 68 के तहत, यदि किसी भागीदारी समझौते का लिखित रूप नहीं है, तो क्या मौखिक समझौते को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? |
हां, मौखिक समझौते को भी साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है |
धारा 68 के अनुसार, भागीदारी में होने वाली व्यावसायिक लेन-देन के साक्ष्य के रूप में क्या माना जाता है? |
बैंक विवरण और अन्य संबंधित लेन-देन रिकॉर्ड |
धारा 68 के तहत, यदि भागीदारी समझौता अनुपस्थित हो तो साक्ष्य के रूप में क्या लिया जा सकता है? |
फर्म के पुराने रिकॉर्ड और बैंक खाता विवरण |
धारा 68 के अनुसार, क्या भागीदार अपने खिलाफ दिए गए बयान को साक्ष्य के रूप में चुनौती कर सकता है? |
हां, भागीदार अपने बयान को चुनौती दे सकता है |
किस मामले में, अदालत ने निर्णय दिया था जब भागीदारी के दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता पर विवाद हुआ था, अदालत ने भागीदारी दस्तावेज़ों को प्रमाणित किया और स्वीकार किया? |
रमेश कुमार बनाम राजेश एंटरप्राइजेज (2012) |
धारा 68 के अंतर्गत, क्या भागीदारी में किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए प्रमाण प्रस्तुत करने के दौरान, व्यक्ति के पास दस्तावेज़ के मूल रूप में होना आवश्यक है? |
नहीं, सिर्फ उसकी प्रति पर्याप्त होती है |
धारा 69 किससे संबंधित है? |
रजिस्ट्री न कराने का प्रभाव (Effect of non-registration) |
धारा 69 के अनुसार, यदि भागीदारी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, तो किस प्रकार का प्रभाव होता है? |
भागीदारी केवल व्यक्तिगत समझौतों तक सीमित रहती है और भागीदार बाहरी व्यक्तियों से लेन-देन नहीं कर सकते |
धारा 69 के तहत, यदि भागीदारी रजिस्टर्ड नहीं है, तो क्या भागीदार अपने फर्म के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं? |
नहीं, वे कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकते |
धारा 69 के अनुसार, यदि भागीदारी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, तो किस प्रकार के दावे को यह प्रभावित करता है? |
किसी भी बाहरी व्यक्ति के खिलाफ दावे |
धारा 69 के तहत, यदि भागीदारी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, तो भागीदार के पास क्या अधिकार होता है? |
वे भागीदारी से जुड़े किसी भी व्यक्ति से कानूनी तरीके से वसूली नहीं कर सकते |
किस मामले में, अदालत ने रजिस्ट्री न कराए जाने की स्थिति में निर्णय दिया था, कि रजिस्ट्री न होने पर भागीदारों का अधिकार सीमित रहता है? |
मेसर्स दुर्गा प्रसाद बनाम मेसर्स नंद किशोर (2018) |
धारा 69 के तहत, यदि भागीदारी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, तो बाहरी व्यक्ति क्या कर सकते हैं? |
वे रजिस्ट्री न होने पर भी भागीदारों से कानूनी दावा कर सकते हैं |
धारा 69 के अनुसार, रजिस्ट्री न कराए जाने पर, भागीदारी के लिए क्या अन्य कानूनी परिणाम हो सकते हैं? |
भागीदार बाहरी व्यक्तियों से लेन-देन करने के लिए कानूनी रूप से प्रतिबंधित होते हैं |
क्या धारा 69 के तहत रजिस्ट्री न कराने पर कोई कानूनी कार्रवाई की जा सकती है? |
हां, रजिस्ट्री न होने पर किसी भागीदार पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है |
क्या धारा 69 के तहत रजिस्ट्री न करने की स्थिति में कोई भागीदार अकेले ही कानूनी कार्रवाई कर सकता है? |
नहीं, सभी भागीदारों को मिलकर कार्रवाई करनी होगी |
धारा 70 किससे संबंधित है? |
मिथ्या विशिष्टियां देने के लिए शास्ति (Penalty for furnishing false particulars) |
धारा 70 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने भागीदारी के बारे में मिथ्या या गलत जानकारी दी हो तो क्या होता है? |
उसे दंड या शास्ति दी जा सकती है |
धारा 70 के तहत, यदि किसी व्यक्ति ने भागीदारी की जानकारी गलत तरीके से दी है तो उसे कितनी अवधि तक की सजा हो सकती है? |
कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय होगा। |
धारा 70 के तहत, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत जानकारी देता है, तो क्या यह दंडनीय होगा? |
हां, यह अपराध माना जाएगा |
किस मामले में, निर्णय दिया गया था जब भागीदार ने भागीदारी के बारे में मिथ्या जानकारी दी थी, भागीदार को तीन साल की सजा दी गई थी? |
एन. के. एंटरप्राइजेज बनाम भारत संघ (2012) |
धारा 70 के तहत, मिथ्या जानकारी देने के परिणामस्वरूप यदि भागीदारी को वित्तीय नुकसान हुआ, तो यह किसके द्वारा वसूला जाएगा? |
भागीदारी की कुल संपत्ति से |
किस मामले में, निर्णय दिया गया था जब भागीदारों ने मिथ्या जानकारी दी थी, भागीदारों को तीन साल की सजा दी गई और जुर्माना लगाया गया? |
एम.आर.एस.वी. कंपनी बनाम जेड पार्टनरशिप (2015) |
धारा 71 किससे संबंधित है? |
नियम बनाने की शक्ति (Power to make rules) |
धारा 71 के तहत, नियम बनाने की शक्ति किस को है? |
राज्य सरकार को |
धारा 71 के तहत नियम बनाने का अधिकार किस उद्देश्य से दिया गया है? |
भागीदारी के संचालन को सुनिश्चित करने के लिए |
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अध्याय- VIII |
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अनुपूरक (Supplemental) |
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धारा 72 के अंतर्गत ‘लोक सूचना’ किस स्थिति में आवश्यक मानी जाती है? |
भागीदारी फर्म के विघटन या भागीदार के अलग होने पर |
धारा 72 के अनुसार, लोक सूचना देने का कौन-सा माध्यम अनिवार्य है? |
राज्य सरकार के गजट में प्रकाशन |
लोक सूचना देने के लिए स्थानीय समाचार पत्र में सूचना किस भाषा में होनी चाहिए? |
उस क्षेत्र की प्रमुख भाषा में |
धारा 72 किससे संबंधित है? |
लोक सूचना देने का ढंग (Mode of giving public notice) |
धारा 72 में लोक सूचना के क्या उद्देश्य हैं? |
जनता को भागीदारी के विघटन या परिवर्तन के बारे में सूचित करना |
किस मामले में, लोक सूचना न देने पर तीसरे पक्ष को अज्ञानता के कारण क्षमा देना पर सुप्रीम कोर्ट ने ज़ोर दिया? |
केशवलाल बनाम वल्लभ दास (1958) |
धारा 72 के अंतर्गत लोक सूचना न देने का क्या प्रभाव होता है? |
तीसरे पक्ष के अधिकार संरक्षित रहते हैं |
लोक सूचना देने के किन्हीं दो प्रमुख साधनों का उल्लेख धारा 72 में किया गया है? |
स्थानीय समाचार पत्र और सरकारी गजट |
धारा 72 में सूचना देने का उद्देश्य किसे लाभ पहुँचाता है? |
तीसरे पक्ष को जो फर्म से व्यापार करता है |
धारा 72 के अनुसार, यदि भागीदारी फर्म का मुख्य स्थान बदला जाए, तो क्या आवश्यक है? |
लोक सूचना देना |
लोक सूचना कब से प्रभावी मानी जाती है? |
जब गजट में प्रकाशित हो |
यदि लोक सूचना समाचार पत्र में दी जाती है परंतु गजट में नहीं, तो क्या यह मान्य होगी? |
नहीं, दोनों माध्यम जरूरी हैं |
धारा 72 की अनुपालना नहीं होने पर किसका अधिकार सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है? |
तीसरे पक्ष का |
किस मामले में, लोक सूचना के पहलू पर विचार किया गया, समाचार पत्र में प्रकाशन की अनिवार्यता? |
तुलसीराम बनाम नारायण (1975) |
धारा 72 के तहत ‘सार्वजनिक नोटिस' का अर्थ क्या है? |
गजट और अखबार दोनों में प्रकाशित सूचना |
यदि कोई मुकदमा भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932से पहले दाखिल हुआ हो, तो वह किस कानून के तहत सुना जाएगा? |
पुराना अधिनियम (Contract Act, Chapter VII) |
धारा 74 के अंतर्गत किस कानून को औपचारिक रूप से निरस्त किया गया? |
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 का भागीदारी से संबंधित भाग |
धारा 74 में "व्यावृत्ति" (Repeal) से क्या तात्पर्य है? |
पुराने कानून को समाप्त करना |
धारा 74 में “बचत” का क्या उद्देश्य है? |
पुराने मामलों की वैधता बनाए रखना |
धारा 74 के अंतर्गत " बचत " क्लॉज़ किस पर लागू होता है? |
उन कार्यों, अधिकारों या दायित्वों पर जो पुराने अधिनियम के अंतर्गत उत्पन्न हुए |
किस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, अधिनियम के लागू होने से पहले उत्पन्न मामलों पर बचत क्लॉज लागू होता है? |
आर.सी. मित्तर एंड संस बनाम सीआईटी (1959) |
क्या धारा 74 की बचत क्लॉज नए मामलों पर लागू होती है? |
नहीं |